मंगलवार, 15 नवंबर 2011

मैं ही तो वो रँग-राज हूँ

निकालो निकालो , मुझे इस अवसाद से निकालो
उठा दो , उठा दो , मेरे मन को उठा दो
क्यों बोये अकेलेपन , बचने , भागने के नुस्खे
बेचैनी , हार , खुद को डुबोने के नुस्खे
चुनने थे फूल , चुन लिये कैसे काँटे
बोनी थीं प्रेम और आत्मविश्वास की फसलें
करना था सामना अपनी हिम्मत के सहारे
आदमी की मार होती या कुदरत की मारें
बन्द गलियों में उदास आदमी हो या हों टूटे सितारे
आसमाँ से उतरें तो चमकने की हसरत को निहारें
आ चलें , बबूल सी खिजाँ हो या हों बहारें
अन्दर इक सागर लेता है हिलोरें
अपनी ऊर्जा और कर्म-शक्ति विचारें
सब मेरे अपने हैं , ये हैं वक्त की मारें
खोया है चैन , खुद को खुद ही पत्थर मारे
निकलना चाहता है चक्रव्यूह से , बताती हैं तेरी पुकारें
आती हैं तराशने बुरे वक्त की ठोकरें
मत खेल अपने दिल से , महँगा खिलौना पुकारे
मैं ही तो वो रँग-राज हूँ , जो तेरे क़दमों में हौसला और हिम्मत उतारे

गुरुवार, 30 जून 2011

१३.

कुछ काम की बातेँ ..
नकारात्मक से सकारात्मक का परिवर्तन लाने के लिये सबसे पहले छोटी छोटी वस्तुओं के बारे में सकारात्मक विचार आरम्भ करो । लम्बे समय से चली आ रही अपनी नकारात्मक मानसिक प्रवृत्ति को छोटे छोटे सकारात्मक विचारों से सराबोर कर दो , जैसे ' मैं कर सकता हूँ ' , ' यह बिलकुल संभव है ' , ' यह अच्छा साबित होने जा रहा है ' । मन में ऐसे सकारात्मक विचार भरने मात्र से एक ताज़ा , छोटा मानसिक मार्ग बनना आरम्भ हो जाएगा । कुछ समय तक प्रतिदिन दोहराने से तथा और अधिक शक्तिशाली विचारों द्वारा इनका अनुसरण करने से , यह अभ्यास मन में बन रहे इस मार्ग को स्थाई और अन्ततः पुराने नकारात्मक विचार को काट कर मिटा देगा । तब आपके मन का प्रबल विचार एक सकारात्मक मानसिक प्रवृत्ति का होगा । _ स्वेट मार्डेन
अवसाद ग्रस्त मन चुप्पी , शांति , मरणान्तक नीरवता को यूँ ग्रहण करता है जैसे यही उसकी नियति हो , आशा और उत्साह के लिये एक खिड़की क्या झरोखा भी खुला नहीं रखता , इस नैराश्य से लगाव भी तो नहीं , जानता है तिल तिल मर रहा है , फिर भी ! इच्छा , आशा , विष्वास और कर्म का दामन थामे बिना नैराश्य की नदी से बाहर नहीं आ सकता। _स्वयंम
मैं अपनी दृष्टि और मनोवृत्तियाँ उस महान सृष्टा की विशालता की ओर केन्द्रित करता हूँ । ऐसा करने से मेरे मन में प्रकाश और उत्साह का महान समुद्र लहराने लगेगा । मेरे जीवनसंग्राम में आधी विजय मेरे दृढ निश्चय और संकल्प द्वारा हो ही चुकी है । केवल आधी विजय प्राप्त करने के लिये मुझे काम करना है ।
" आत्म निन्दा घोर अपराध है , इससे सृष्टि और सृष्टिकर्ता दोनों का ही अनादर होता है । "_स्वेट मार्डेन
हमें सदा ही प्रगति के विचारों से , रचनात्मक विचारों से , निर्माणात्मक विचारों से , सृजनात्मक भावों से ,अन्वेषण से भरे भावों से तथा सबसे अधिक आशावाद से हमेशा ही भरपूर रहना चाहिए ।निराशा के सामान दूसरा पाप नहीं है । पाप रूपिणी निराशा को अपने शब्द कोष से हटा देना चाहिए ।_ स्वामी रामतीर्थ
हमेशा आपके कर्म खुशियाँ ही लायें , यह जरुरी नहीं है , लेकिन यह भी सच है कि बिना कर्म के कोई ख़ुशी मिलती नहीं है । _ बेंजामिन
कर्म करने वालों में शामिल हों , क्योंकि उनकी सँख्या कम होने के कारण प्रतियोगिता बहुत कम है और आपकी सफलता के अवसर ज्यादा । _ इन्दिरा गाँधी
प्रसन्नता और उल्लास जब स्वभाव में उतर आए तो वही जप तप और साधना है । यदि मन को न सँभाल पाए तो दुखी रहोगे । मन की दिशा ठीक कर लोगे , तो दशा स्वयम ठीक हो जायेगी ।_ सुधांशु जी महाराज
आनंद चाहते हो , आलोक चाहते हो ? तो सबसे पहले अंतस में खोजो । जो वहाँ खोजता है , उसे फिर और कहीं नहीं खोजना पड़ता । जो वहाँ नहीं खोजता , वह खोजता ही रहता है , किन्तु पाता नहीं है । _ओशो
ईश्वर सब जगह व्याप्त है , फिर भी निराश मन उसकी उपस्थिति को महसूस नहीं कर पाता । एक माँ ने अपने बच्चे को जब नमाज पढना सिखाया तो साथ में कहा कि खुदा तुम्हारे लिये मिश्री का प्रसाद रख जाता है । जब भी बच्चा नमाज पढ़ कर आँख खोलता , पास में मिश्री पाता । एक दिन माँ गुजर गईं । किसी दिन जब बच्चे ने नमाज पढ़ी , खुदा को लगा इस बच्चे का विश्वास नहीं टूटना चाहिए , खुदा ने मिश्री का प्रसाद बच्चे के पास ला कर रख दिया । नैराश्य के गहनतम पलों में हमारे मन को भी यूँ ही टिमटिमाना चाहिए ....खुदा , मेरा प्रसाद , मेरी मिश्री , कब ? कब ?
हमेशा उसे महसूस कीजिये । निराश मन की आशा वही तो है । कुछ यूँ गुनगुनाइए ....
' इतनी शक्ति हमें देना दाता
मन का विश्वास कमजोर हो न '
'हे प्रभु आनन्द दाता , ज्ञान हमको दीजिये
जल उठें मोती की मानिन्द
प्यार हमको कीजिये '
'हम होंगे कामयाब एक दिन , एक दिन ' ...

बुधवार, 23 मार्च 2011

१२.

अवसाद किन परिस्थितियों में हो सकता है -

.आडम्बर करते करते अपना ही मन धोखा दे जाए (clash between the outer world and the innerself )

.अति महत्वाकाँक्षी होना

.कोई बड़ी आर्थिक हानि , अचानक आई हुई विपदा

.भावनात्मक असुरक्षा महसूस करना

.अनैतिक सम्बधों के कारण

ब.पैसे की कमी के कारण

स.बच्चों को प्यार मिलना

द.वक्त की कमी की वजह से

.प्रियजन का बिछोह

.पारिवारिक कारणों से या व्यवसायिक कारणों से बना हुआ तनाव

.मन के विरुद्ध परिस्थितियों में लगातार काम करना

.खाली दिमाग , बेरोजगारी

.शक

१०.भ्रम

११.डर

१२.संवादहीनता

१३.गलती कर बैठने का अहसास

१४.अत्यधिक व्यस्तता

ये कारण परिस्थिति जन्य हैंकारण कोई भी हो , आपकी मनस्थिति को कमजोर करता हैफिर सामना करने की बजाय , हल ढूँढने की बजाय अगर आप उस से भागना चाहते हैं , अशक्त महसूस करते हैं , बस यहीं से शुरू होता है मानसिक अवसादजितना भागेंगे ये गहराता जाएगापलायन की बात कभी सोचेंसमस्या से हारें या जीतें ,कोई गम करेंबहादुरी से सामना करेंपरिस्थिति से भाग कर अवसाद को जन्म लेने देंउठिए कमर कस लीजियेईश्वर ने सबके मन को इतनी ताकत दी है कि रेत की तरह फिसलते हुए अपने मन को अपनी मुट्ठी में जकड़ ले

बोरियत हो तो समझ लें अवसाद रुपी शत्रु जाग रहा है , सावधान हो जाइएएक पल गंवाइये , कुछ कुछ करिएवॉक पर जाइए , किसी को मिलने जाइए या किसी को घर पर बुलाइएकुछ भी कर्म कीजिये

यदि तुम सूर्य के खो जाने पर आँसूं बहाओगे , तो तारों को भी खो बैठोगे । _ रवीन्द्र नाथ टैगोर

इस बात को सदा याद रखेंकितना भी खोया हो , जो आपके पास बचा है , उसे संभालिये , उसे संवारिये । दुनिया वही है , सिर्फ आपने उसे देखने का नजरिया बदल दिया हैदृढ़ता के साथ अपने आप को संभालियेमन को सशक्त महसूस कीजियेआपके पास बहुत कुछ होगा जो आपकी तरफ सहारा पाने की आस लिये ताक रहा होगा , वही आपका सहारा बनेगाअपने झिलमिलाते तारों को सहेजियेजिन्दगी एक नए सिरे से शुरू कीजिये

' कर्म ' जीवन का मूल मन्त्र हैयही एक और एकमात्र मन्त्र है अवसाद से बाहर आने कासूर्य , चंद्रमा , पृथ्वी सब निरन्तर गतिशील हैंयहाँ तक कि समुद्र में लहरें भी निरन्तर गतिमान हैंगति ही जीवन हैजँग लग कर खत्म होने से अच्छा है कि किसी के काम कर खत्म होवें

किसी शायर ने क्या खूब कहा है ...

घर से मस्जिद है बहुत दूर , चलो कुछ यूँ कर लें

चन्द रोते हुए बच्चों को हँसाया जाए

कोई भी अच्छा काम करने से आत्म संतुष्टि प्राप्त होती हैकर्म और कर्तव्य परायणता साथ साथ चलते हैंकर्तव्य से कभी मुँह मोड़ेंजो आपको करना चाहिए , करेंअपने प्रति , परिवार के प्रति , हो सके तो समाज के प्रति भी कर्तव्य से विमुख होंकर्म और कर्तव्य परायणता ही वह सीढ़ी है जो आपको सफलता के उच्चतम शिखर तक पहुँचा सकती हैआपका कर्म आपको एक पहचान देने में सक्षम होगा

ये आपको तय करना है कि कब आपको इस दवा की कितनी खुराक लेनी हैअपने आप से कहें कि ...

हम होंगे कामयाब एक दिन

हम होंगे कामयाब एक दिन

पूरा है विष्वास

पूरा है विष्वास

मन में है विश्वास

हम होंगे कामयाब एक दिन

मानव का मन जितना अधिक पवित्रता से जुड़ा होता है , उतना ही ऊर्जा का क्षय कम होता है

मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

११.

सहज सरल चलना सीखें ...

'जहाँ डाल डाल पर सोने की चिड़ियाँ करती हैं बसेरा

वो भारत देश है मेरा ....

जहाँ सत्य अहिंसा और प्रेम का पग पग लगता डेरा

वो भारत देश है मेरा...

वो भारत देश है मेरा...'

इस गीत के साथ तन्मयता से रच बस जाइएदेश-भक्ति और प्रेम का समुद्र हिलोरें लेने लगेगाजीवन के छोटे मोटे उद्देश्यों को पूरे करते हुए चलिए बड़े उद्देश्य की ओर । आपको कुछ करना नहीं है , बस जो काम आपको मिला है उसे ईमानदारी और प्रेम के साथ करियेजो आपसे मिलने आए उसका बुरा चाहेंसामने वाले का जो भी भला अपनी सामर्थ्य के अन्दर आप कर सकते हैं , कर दीजियेअपने आपको शांत खुश रखना अपनी जिन्दगी का उद्देश्य बना लेंदूसरों के सुख को बर्दाश्त करना उसमें सुखी होना सीखिएदुखियों को देख कर करुणित भी जरुर होवेंसँसार सुन्दर बनता है सुन्दर जीवन से , इसलिए स्वयं को सुन्दर बनायेंजो दूसरों के काम आते हैं वे सुन्दर बन जाते हैंदूसरों को प्रेम करने वाले को प्रभु बेहद चाहते हैं

जीवन में उद्देश्य जरुर होना चाहिएउद्देश्य हीनता बहुत बुरी स्थिति हैअक्सर लोग भ्रम में ही जिन्दगी गुजारते हैंरूप रंग का , ओहदे का , सर्व समर्थ होने का , कार्य-कुशलता का , दादागिरी का ( प्रभुत्व का , रौब का ) , या कैसा भी भ्रम वो पाल लेते हैंहालांकि ये एक सही दिशा नहीं कही जा सकती , भ्रम ही सही फिर भी वे एक मजबूत मन के साथ जीते तो हैंनिराश मनों के लिये ये दुनिया नहीं बनी , या फिर निराश मन ऐसी दुनिया के लायक नहीं बनेवे तो इस सँसार सागर में तिनकों की तरह बह रहे हैं , सागर की लहरें , हिचकोले इन्हें कितना विचलित कर जाते हैं ..कि ये जीना ही भूल जाते हैं

वक्त जिन परिस्थितियों को हमारे आस पास बुनता है , उन परिस्थितियों के प्रति हमारी संवेदन शीलता और उस से उत्पन्न हुआ अवसाद ( नकारात्मकता ) हमें पीछे ला कर खड़ा कर देता हैहमारी मानसिकता एक मजबूत रोल अदा करती है , वरना हम हर बुरी परिस्थिति में भी एक सा रेस्पोंस देतेजब हम मजबूत थे तो कुछ असर होता था । जब ये वक्त निकल जाएगा , हम फिर वैसे ही मजबूत इरादों वाले होंगेतो , इस वक्त को काटना है ; नियम से , कर्म से, पूजा-प्रार्थना से ,दूसरे कामों में मन लगाते हुएजानती हूँ मन बगावत करेगा , हर पल रोयेगा , हर किसी की तरफ आशा से देखेगा कि कोई हमदर्दी दे , सहारा दे , हाथ पकड़ ले और इस निराशा के अंधे कुँए से बाहर निकाल लेकोई डॉक्टर हो जो दवा दे , ठीक कर देदवा दे और नींद जाए , इन निराश विचारों से मुक्ति मिल जाएनहीं ये इसका हल नहीं है , कृत्रिम नींद कभी स्थाई आराम नहीं देगी , आराम देंगे मन को तरोताजा करने वाले विचार , सकारात्मक विचारआराम और नींद लायेंगे वे कर्म जो सकारात्मकता के साथ किये गए होंअपने नियमित कर्म कीजिये , किसी का सहारा बनिए , सहारा मत खोजिये , हमदर्दी मत खोजिये , दोस्त खोजियेमंजिल जरुर मिलेगीरास्ता लंबा है , असंभव लगता है , पर असंभव है नहीं । Impossible , word itself says I m possible.

हार निराशा को अपने शब्द-कोष से हटा दो

कर्म , मित्रों और पूजा का सहारा लेकर आप वक्त पर विजय पायेगेंकर्म करने वाले का वैसे भी कोई सानी नहीं होतारास्ता कितना भी दुर्गम हो , ईश्वर उनकी मदद करता है जो अपनी मदद करते हैं और सच्चे दिल से दूसरों की मदद करना चाहते हैं

गुरुवार, 7 अक्टूबर 2010

१०.

१३.चिन्ता करने से बचें हमें सबसे ज्यादा डर होता है अन्जाने डर का । मेरे गले में दर्द है , खाँसी बहुत उठती है , कहीँ कैंसर न हो जाए , फलाँ फलाँ व्यक्ति को गले का कैंसर हो गया था । ये मेरे दिमाग को क्या हो गया है । मुझे अवसाद न हो जाए या मैं पागल न हो जाऊँ या मेरी स्मरण शक्ति कम न हो जाए । मुझे किसी ने कुछ कर दिया है , क्या पता अब मेरा क्या होगा । मैं बिल्कुल बेकार आदमी हूँ , मुझसे अब कुछ नहीं होगा । मेरा काम अब बिल्कुल चौपट हो जाएगा । चिन्ता और चिता बराबर ही हैं । चिता की अग्नि मुर्दा शरीर को जला कर राख कर देती है और चिन्ता की अग्नि जिन्दा तन मन को तिल तिल कर जलाती रहती है । पहले मन को जलाना शुरू करती है । अन्जाने डर से क्यों त्रस्त हैं ? जो हुआ ही नहीं , उससे डर कर आप अपना वर्तमान बिगाड़ रहे हैं । कभी कभी मौत का डर भी सताता है । जो वक्त हमें मिला है उसको हम यूँ ही गँवाए जा रहे हैं । " मैं इस सन्सार से केवल एक ही बार गुजरने की आशा रखता हूँ , इसलिए यदि किसी प्रकार की दयालुता जो मैं दिखा सकता हूँ या कोई अच्छाई जो मैं सहजीवियों के लिये कर सकता हूँ , मुझे अभी करनी चाहिए , क्योंकि हो सकता है कि दुबारा मैं इस मार्ग से न गुजरूँ । " _ खलील जिब्रान वक्त और भाग्य को अपना काम करने दीजिये । जो भविष्य में छिपा है उसे एक आशा के साथ देखिये , वर्तमान को संवारिये । एक एक पल को जियें , हो सके तो यादगार बनायें । परेशानी आए तो बहादुरी से भोगें । जब हम खुश होते हैं , हमारी सोच कितनी खुशफहमियों से भरी होती है । दुनिया हमें सुन्दर नजर आती है ; हमारा अन्तस ...अन्दर की दुनिया बेहद हसीं होती है ऐसे पलों में । अवसाद ग्रस्त दुखी की नजर में दुनिया जीने लायक ही नहीं होती है ; वो आँख बन्द करता है तो अँधेरा , शब्द-हीन निस्तब्धता या फिर जिन्दगी की भयावहता , भयंकरता उसे खाती नजर आती है । कितना फर्क है दोनों सोचों में । ये हम ही हैं , ये हमारी सोच ही है , जो हमें दूर अन्तहीन उदासी की तरफ धकेल रही है , इस बात को समझ लें । इस निराश जिन्दगी में भी कुछ तो ऐसा होगा , जिसे पहले करते वक्त हमें ख़ुशी होती थी , तो वही वही करते चलें । शौक से एक एक कौर स्वाद के साथ खाना खाएं । शौक के साथ एक एक पल जिन्दगी को जीना सीखें । कर्म सबसे बड़ा अस्त्र है , इसे उठाइये , चलिए जीवन की जँग को जीत कर दिखाइये । मन को जीतना सबसे बड़ी जीत है । दुख मेहमान है , आया है तो एक दिन जाएगा ही । दुख को ज्यादा भाव मत दीजिये । जैसे मेहमान को ज्यादा भाव देने से वो टिक जाता है , कि ये मुझसे बड़ा प्रभावित है , कुछ दिन और रुक जाना चाहिए ; ऐसे ही दुख फिर जाना नहीं चाहेगा । इसलिए तकलीफ को लैट गो करते हुए अपने रोजमर्रा के काम करते चलिए ।

मंगलवार, 28 सितंबर 2010

९.


ये जीवन एक साधना हैइसे आप एक नियमित दिनचर्या बना कर , एक उद्देश्य को सामने रख कर जियेंअपने अन्दर अच्छे गुण पैदा करें , पुण्य कार्य करें , धर्म के रास्ते चलते हुए अपने दुःख के दिनों को धीरज के रास्ते बीतते हुए देखें

सुख-दुख ईश्वर के अधीन है । जीवन अवधि , सुख दुख , धन , विद्या मनुष्य के जन्म से पहले ही निश्चित होता है ; इसलिए तो इनके बारे में चिन्ता करनी चाहिए और भटकना चाहिएफिर भी सब कुछ भाग्य के भरोसे नहीं छोड़ देना चाहिए । ' कर्मण्ये वाधिकारस्ते ' को ध्यान में रखते हुए सदा कर्म करते रहना चाहिए


अब जो बात मैं कहने जा रही हूँ वो जिन्दगी में कभी अवसाद को आने ही नहीं देगी | आप सिर्फ ये शरीर नहीं हैं , बल्कि एक बड़ी शक्ति से अलग होकर आई हुई प्रकाश पुँज आत्मा हैं | जिस तरह हम प्रार्थना करके सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त करते हैं , उसी तरह हम ऊर्जा को दूसरी आत्माओं को भी वितरित कर सकते हैं | मन के अन्दर इतनी ताकत है कि किसी भी गिरते हुए मन को सँभाल ले | बाहर जो गुजर रहें हैं वो हालात हैं , गुजर जायेंगे , आप अपने अन्दर उन्हें गहरा न उतारें , आपको तो सिर्फ ये देखना है कि ऐसे में आप कितने विवेक-पूर्ण निर्णय लेकर अपने आप को जीतते हैं |
कहते हैं कि प्रकृति न्याय करती है जो कभी-कभी इन खुली आँखों से नहीं भी नजर आता ; मगर आप ख्याल करें कि जब-जब आपने गुस्सा किया तो गुस्सा करने से पहले और बाद में आप कितना कुढ़े ? आपने कितनी ऊर्जा गँवाई , कितनी शांति खोई और कितने दिन दुश्मन सोते जागते आपकी आँखों के सामने रहा ? ये न्याय तो ' इस हाथ दे और इस हाथ ले ' वाला हो गया | सोचें तो जरा , कोई खोट तो होती है ऐसे विचारों और क्रियाओं में जो हमें शांति से दूर ले जाती है | अच्छा होता अगर हम शान्तिपूर्ण हल ढूँढ़ते | दूसरे को परिस्थिति वश जान कर अगर हम उसे तहे-दिल से माफ़ कर सकें तो उससे बड़ी करुणा नहीं है |
परेशानियों को हमेशा सबक की तरह लें , प्रकृति आपको सिखाना चाहती है , परीक्षा लेती है , कितने खरे उतरते हो , कितने अडोल हो ? इस रोल के लिए आपको चुना गया है | आप चाहें तो टूट कर बिखर जाएँ , आप चाहें तो निखर जाएँ |
अपनी ऊर्जा को सही दिशा दें |जब आप इस अहसास से भरे होंगे कि आपके आस-पास इतने सारे लोग , सब उस सर्व-शक्तिमान के अंश हैं , सिर्फ शरीर रूपी आवरण की वजह से भटके हुए हैं ; तब आप किसी के साथ अन्याय नहीं कर पायेंगे | ' सकल ते मध्य सकल ते उदास ' जब आप अकेले हैं तब भी आपको अकेले नहीं लगेगा , दूर उसी शक्ति से लय जुड़ जायेगी ; और जब भीड़ में इतने लोगों के बीच में होंगे तब भी आप अकेले हैं क्योंकि मन की ये यात्रा तो आपको अकेले ही तय करनी है ना | अच्छा है इस यात्रा को हम सहज बनाएं , अपनी तरफ से जटिलताएं न जोड़ें | यदि हम सबको अपना समझते हुए किसी का दिल नहीं दुखाते हैं ( मजबूरी वश किसी के भले के लिए हमें कभी-कभी सख्त रवैय्या अपनाना पड़ता है , वो एक अलग बात है क्योंकि उसमें भी दूसरे की भलाई छिपी है ) , तो प्रकृति भी न्याय करती है , वो आपको शांति सब्र जैसे गुणों से भी बढ़ कर कैसे भी उपहार से नवाज सकती है | सबसे बड़ी अदालत है प्रकृति , जिस ऊर्जा को व्यर्थ गँवा रहे थे , हो सकता है उसका रुख मोड़ते ही , वही आपकी ताकत या पहचान बन कर उभरे | और हम सारी प्यासी आत्माएं अपना वजूद ही तो तलाश रहीं हैं | अब इस वजूद की तलाश में एक-दूसरे से टकराना नहीं है , सबको गले लगाना है | मैं रूहानी प्रेम की बात कर रही हूँ , साथ ही सामाजिक व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए हमें अपनी मर्यादाओं को नहीं भूलना है , बस यही कला सीखनी है कि मन पर दुःख का लवलेश भी न हो |
हाँ , तो अगर हम किसी का दिल नहीं दुखाते हैं ( आपका मन हर सूक्ष्म से सूक्ष्मतर बात समझता है कि कितने ही तरीकों से किसी को भी दुखाया जा सकता है ) , दुनिया की सबसे बड़ी अदालत जो आपके मन के अन्दर भी लगती है , कहिये कि आप कहाँ खड़े हैं , कटघरे में या मुस्कराते हुए इस गुजरते हुए मँच के साक्षी बन कर .....इसी का हिस्सा बने हुए ? इस अहसास के साथ ही आप जीवन जीने की कला सीख जायेंगे |
मन की नकेल अपने हाथ रखिये , चिंता और डर को हावी न होने दें | भाव और बुद्धि का सामंजस्य बिठाते हुए चलें | भाव के बिना सब नीरस है , बुद्धि के बिना सब आफत है | जो छूट गया है , जिसका आप दुख मना रहे हैं , चाहे वह महत्वाकांक्षाएं थीं या इच्छाएं , सुख-सुविधाएं या बड़े प्रिय अपने या मान-सम्मान या फिर सपने ; वो तो महज़ बैसाखियाँ थीं जो आप ने अपने जीने के लिए सहारे या कहिये बहाने की तरह खोज लिए थे , आप अपने सहारे या अपने नूर के साथ चले ही कहाँ ? आपने अपनी दुनिया भी इतनी सीमित कर ली थी , ज़रा अपनी दुनिया का दायरा बड़ा कीजिये , दूसरों का दुःख नजर आएगा तो अपना दुख छोटा नजर आएगा | सकारात्मक चिंतन ही सही दिशा दे सकता है |
दूर कहीं उस सर्व-शक्तिमान की मर्जी से लय मिला कर , मार्ग को सुगम बना कर , तकलीफों को प्रसाद समझ , कुछ कर दिखाने का अवसर समझ , हर दिन को उत्सव समझ चलना चाहिए , यही तो साधना है | आपने मस्त फ़कीर को देखा है , जब गाता है तो कायनात गाती है , जब छोड़ के चल देता है तो कुछ भी नहीं अपना | ऐसे ही हम दुखों को छोड़ दें , बोझ की तरह ढोएँ नहीं , और गायें तो ऐसे कि रोम-रोम गाये | जिन्दगी एक तपस्या है , जीवन को साध कर एक साधक की तरह जियें , बच्चे की तरह नहीं कह सकती क्योंकि हम सब बड़े हो गए हैं |
जब मन पर बोझ नहीं होगा तो ग्लानि भी नहीं होगी | पिछली गल्तियों को भूल जाइए , ' जब जागे तभी सबेरा चरितार्थ ' हो जायेगा | ये सफ़र , ये जीवन-यात्रा ही सब कुछ है , इसे सरल बना कर , इसी के सजदे में सिर झुकाइये |

उम्र के त्यौहार में रोना मना है
जाग, गले लग हँस कर
कि सोना मना है
छूट गया जो , छोड़ो यारों , अपना नहीं था
सजदे में सफ़र के , आज को सँवारा नहीं था
पकड़ते हैं उँगली बड़े-बड़े सपने
हमने तो खुद को पुकारा नहीं था