गुरुवार, 7 अक्टूबर 2010
१०.
१३.चिन्ता करने से बचें
हमें सबसे ज्यादा डर होता है अन्जाने डर का । मेरे गले में दर्द है , खाँसी बहुत उठती है , कहीँ कैंसर न हो जाए , फलाँ फलाँ व्यक्ति को गले का कैंसर हो गया था । ये मेरे दिमाग को क्या हो गया है । मुझे अवसाद न हो जाए या मैं पागल न हो जाऊँ या मेरी स्मरण शक्ति कम न हो जाए । मुझे किसी ने कुछ कर दिया है , क्या पता अब मेरा क्या होगा । मैं बिल्कुल बेकार आदमी हूँ , मुझसे अब कुछ नहीं होगा । मेरा काम अब बिल्कुल चौपट हो जाएगा । चिन्ता और चिता बराबर ही हैं । चिता की अग्नि मुर्दा शरीर को जला कर राख कर देती है और चिन्ता की अग्नि जिन्दा तन मन को तिल तिल कर जलाती रहती है । पहले मन को जलाना शुरू करती है । अन्जाने डर से क्यों त्रस्त हैं ? जो हुआ ही नहीं , उससे डर कर आप अपना वर्तमान बिगाड़ रहे हैं । कभी कभी मौत का डर भी सताता है । जो वक्त हमें मिला है उसको हम यूँ ही गँवाए जा रहे हैं ।
" मैं इस सन्सार से केवल एक ही बार गुजरने की आशा रखता हूँ , इसलिए यदि किसी प्रकार की दयालुता जो मैं दिखा सकता हूँ या कोई अच्छाई जो मैं सहजीवियों के लिये कर सकता हूँ , मुझे अभी करनी चाहिए , क्योंकि हो सकता है कि दुबारा मैं इस मार्ग से न गुजरूँ । " _ खलील जिब्रान
वक्त और भाग्य को अपना काम करने दीजिये । जो भविष्य में छिपा है उसे एक आशा के साथ देखिये , वर्तमान को संवारिये । एक एक पल को जियें , हो सके तो यादगार बनायें । परेशानी आए तो बहादुरी से भोगें ।
जब हम खुश होते हैं , हमारी सोच कितनी खुशफहमियों से भरी होती है । दुनिया हमें सुन्दर नजर आती है ; हमारा अन्तस ...अन्दर की दुनिया बेहद हसीं होती है ऐसे पलों में । अवसाद ग्रस्त दुखी की नजर में दुनिया जीने लायक ही नहीं होती है ; वो आँख बन्द करता है तो अँधेरा , शब्द-हीन निस्तब्धता या फिर जिन्दगी की भयावहता , भयंकरता उसे खाती नजर आती है । कितना फर्क है दोनों सोचों में । ये हम ही हैं , ये हमारी सोच ही है , जो हमें दूर अन्तहीन उदासी की तरफ धकेल रही है , इस बात को समझ लें । इस निराश जिन्दगी में भी कुछ तो ऐसा होगा , जिसे पहले करते वक्त हमें ख़ुशी होती थी , तो वही वही करते चलें । शौक से एक एक कौर स्वाद के साथ खाना खाएं । शौक के साथ एक एक पल जिन्दगी को जीना सीखें । कर्म सबसे बड़ा अस्त्र है , इसे उठाइये , चलिए जीवन की जँग को जीत कर दिखाइये । मन को जीतना सबसे बड़ी जीत है ।
दुख मेहमान है , आया है तो एक दिन जाएगा ही । दुख को ज्यादा भाव मत दीजिये । जैसे मेहमान को ज्यादा भाव देने से वो टिक जाता है , कि ये मुझसे बड़ा प्रभावित है , कुछ दिन और रुक जाना चाहिए ; ऐसे ही दुख फिर जाना नहीं चाहेगा । इसलिए तकलीफ को लैट गो करते हुए अपने रोजमर्रा के काम करते चलिए ।
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प्रेरक प्रविष्टि !
जवाब देंहटाएंbahut umda lekh.. dukh sukh to aani jaani baatein hai, unke liye kya sochna...:)
जवाब देंहटाएंmere blog par bhi sawagat hai..
Lyrics Mantra
thankyou
shukriya aapke comment ke liye..aapke sujhaav par goar jaroor karunga...
जवाब देंहटाएंLyrics Mantra
Hindi Songs Music
यह अपने तरह का अनूठा ब्लॉग है कृपया लिखती रहें ! शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंशारदा जी, बहुत ही उपयोगी सलाह हैं।
जवाब देंहटाएं---------
समाधि द्वारा सिद्ध ज्ञान।
प्रकृति की सूक्ष्म हलचलों के विशेषज्ञ पशु-पक्षी।