१०.विचारों का आदान प्रदान करते हुए चित्त को हल्का रखिये
दोस्तों के साथ अपनी समस्याएँ शेयर कीजिये , वरना विचारों का ट्रैफिक जैम तनाव में बदल जायेगा , सबसे बातेँ करते हुए हल्के-फुल्के बने रहिये । परेशानियाँ अगर हमारे दिल में इकट्ठी हो जाएँ तो आउट-गोइंग बार होते ही , अवसाद का रूप ले सकती है । इसलिए शेयर कीजिये , दोस्त बनाइये कुछ बहुत करीबी ।
मन के ख्यालों को दबाओ मत , वरना नासूर बन जायेगा ।
११.आराम करना भी सीखिये
अगर हम दिमाग से , चित्त से न थकें तो शारीरिक थकान हमें महसूस ही नहीं होती । अवसाद में हमें मानसिक थकान बहुत महसूस होती है , इसलिए चौराहे पर जैसे ज्यादा गाड़ियाँ होते ही हरी बत्ती जल जाती है , उसी तरह विचारों का ज्यादा बोझा होते ही आप हरी बत्ती जलाइये और कर्म में जुट जाइए । काम से जब थकें तभी अपने आप से कहें कि अब मैं लाल बत्ती जला कर आराम कर लेता हूँ । आराम भी शरीर के लिये बहुत जरूरी है । जब भी लेटें , नकारात्मक नहीं सोचना तो ब्लैंक (खाली) होने से भी बचें । अच्छा अच्छा सोचिये , जो लोग आप से प्यार करते हैं उनके बारे में सोचें , जिनसे आप प्यार करते हैं उनके बारे में खुशफहमियाँ रखिये ।
अब आप ये तय कर लीजिये कि कब कब आपको लाल बत्ती जलानी है और कब कब हरी बत्ती ।
शनिवार, 25 सितंबर 2010
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बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंकहानी ऐसे बनी– 5, छोड़ झार मुझे डूबन दे !, राजभाषा हिन्दी पर करण समस्तीपुरी की प्रस्तुति, पधारें
is blog par aj hi aana hua.... post bahut pasand aayee.... apka aabhar itne sahi vishay ke baare me jankari dene wale blog ke liye.... ajkal tnaav bhari zindgi me aisi slahen aur samjhaishen dono zaroori hain
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