९.दृढ इच्छा-शक्ति के साथ व्यवहार सन्तुलित रखें
अवसाद में इच्छा-शक्ति की कमी के कारण कभी व्यक्ति रोने लगता है , दूसरों पर दोष मढ़ता है या कभी प्रायश्चित करता है या बहुत ही गुमसुम रहने लगता है । इस सबसे आपको ऊपर आना है । खुश रहने वाले , ख़ुशी बाँटने वाले के पास सब आते हैं , पर क्या रोने वाले के पास कोई आना चाहता है ? रोज रोज रोने वाला अकेला पड़ जाता है , सब उससे दूर भागते हैं । आपने देखा होगा कि ढही हुई दीवार की कोई एक ईंट भी नहीं छोड़ता और सीधी खड़ी इमारत को कोई हाथ भी नहीं लगाता । आपको इमारत बनना है , शान से सीधी खड़ी इमारत ; दीवार की तरह ढहेंगें तो कोई नाम निशान भी न बचेगा । अपने आपको बचाइये , अपने डॉक्टर स्वयं बनिए । दृढ़-इच्छा शक्ति के साथ सब मुमकिन है । अपने आपको यकीन दिलाएं कि आप कर्म करते हुए पहले जैसे ही सन्तुलित बन जायेंगे ।
पुराने लोग कहते थे , मोटा खाओ , मोटा पहनो और मोटा ही सोचो । हर सूक्ष्म से सूक्ष्मतर बात पर हमारी पकड़ , हमारी प्रगति की सूचक तो है , पर इसके साथ ही तस्वीर का हर पहलू देख लेने की क्षमता ने हमें सकारात्मक नकारात्मक नजरिया भी दिया । बढ़ती उम्मीदों और बढ़ते तनाव ने अवसाद भी दिया । महीन हिसाब का कागज़ ही हमारी परेशानियों का कारण बना । अगर हम भावनाओं को हर जगह न जोड़ें , बहुत बारीकियों में न जाएँ , ख़ुशी वाली खबर से खुश होयें और तकलीफ वाली खबर को बहादुरी से हँस कर सहें , तभी जिन्दगी आसान है । इस प्रतिस्पर्धा भरी जिन्दगी में सबको चलने दीजिये ।
' हर ज़र्रा चमकता है , अनवारे इलाही से
हर साँस ये कहती है , हम हैं तो खुदा भी है '
हर साँस ये कहती है , हम हैं तो खुदा भी है '
माना कि समस्या के वक्त समस्या के सिवा और कुछ भी नजर नहीं आता । आप आँखें बंद करिए , अपने आप से कहिये ' मेरी समस्या कोई बाढ़ या प्रलय नहीं है जो सब कुछ बहा ले जायेगी , सब के साथ कोई न कोई समस्या होती है । विवेक के साथ मुझे जो करना चाहिए मैं करूँगा । परमात्मा मेरे साथ रहें , बस कोई गम नहीं । अगर हम सोचते ही रहेंगे , अवसाद से घिर जायेंगे । एक समस्या के साथ दूसरी समस्या खड़ी हो जायेगी । हमें समस्या का हल ढूंढना है , मन में ठान लेंगे तो कैसे नहीं पार पायेंगे ? भगवान सिद्धार्थ ने एक छोटी चींटी के बार बार गिर कर भी दीवार के ऊपरी छोर पर पहुंचना देख कर प्रेरणा पाई और अपना लक्ष्य हासिल किया ।
हाँ कभी गलती कर बैठे हों , उसे सुधारने की कोशिश कीजिये । परिस्थितियों को सुधारने का प्रयत्न करने में कर्म करना है । कभी भी अपनी प्रतिक्रियाओं से हालात को बिगाड़ें मत । अपने मन को उठाना है , गिराना नहीं है । याद रखिये सत्य हरा भरा है और असत्य दरिद्र , इसलिए सदा सत्य का साथ दीजिये । जब तक किसी के जीवन मरण का प्रश्न न हो , झूठ मत बोलिए । ' एक सच सौ सुख ' एक झूठ सौ झूठ बुलवायेगा । अपनी आत्मा अपने ईश्वर के सामने दोषी हो जायेंगे । जो लोग झूठ बोल कर , दूसरों को बेवकूफ बना कर , दूसरों का निरादर कर , अपने आपको बड़ा होशियार समझते हैं ; वह अज्ञानी लोग यह नहीं जानते कि वह इस दुनिया में किसी के भी भरोसे के काबिल नहीं हैं । आप दृढ़ता से सत्य की राह पर चलिए , जैसे प्रकृति शुद्ध रूप में आपके समक्ष है , आप भी शुद्ध रूप में प्रकृति से लय मिलाइये ।
अपने आप को कभी भी संशय के भँवर में न डालें । अपने निर्णय खुद लें व उन पर अमल करें । असफलता से बिलकुल न घबरायें । छोटे-छोटे उद्देश्य बनायें , उन्हें पूरा करने की कोशिश करें । वक्त रेत की तरह मुट्ठी से निकलता जाता है , बेहतर है वक्त के साथ चलिए । समय के साथ- साथ अपने जीवन का भी सदुपयोग करिए व जानिये । चलने का नाम ही जीवन है । वक्त न कभी रुका है , न कभी रुकेगा , इसलिए उसके साथ ताल से ताल मिला कर चलिए ।
आप सोचेंगे कि कल अगर मैं ठीक हो भी गया तो लोग क्या कहेंगे , इसे क्या हुआ था । आप कहेंगे कल मैं मानसिक तौर पर थोडा परेशान था , थोडा डिस्टर्बड था बस । बुलन्द इमारत की तरफ कोई आँख टेढ़ी करके भी नहीं देखता । ऐसा दृढ इच्छा शक्ति के साथ निश्चय ही कर पायेंगे । यकीन रखें , जिस दिन ये निर्णय ले लेंगे , ' जब जागे तभी सबेरा ' चरितार्थ हो जाएगा । आपकी जिन्दगी की सुबह हो चुकी है , चारों तरफ प्रकाश फ़ैल रहा है , महसूस कीजिये ।
आपने देखा होगा कि विपदा के समय कभी आपको अचानक दैवीय सहायता प्राप्त हो जाती है । कोई इन्सान भगवान् का अंश बन कर अचानक आपकी सहायता कर देता है । इसीलिये कहते हैं सब में ईश्वर है , सब में ईश्वर समझ कर सबकी सहायता के लिये तत्पर रहो । जिस दिन आप किसी की आड़े वक्त में सहायता करोगे बिना कुछ पाने की उम्मीद के साथ , आप खुद उस के लिये ईश्वर बन जाओगे । अपने आस-पास जिसका भी सहारा बन सकते हो बन जाओ , आपको खुद ही सहारा मिल जाएगा ।
" Do not complain of sorrows , bacause it is far from etiquette. Happiness can not be had without undergoing sufferings ."
दुख की शिकायत मत करो । इन्सान से शिकायत करोगे सभ्यता के खिलाफ भी है , बात भी बिगड़ेगी । भगवान् से बात कर सकते हैं । दुख आने में भी रहस्य है , प्रकृति चाहती है हम और मंजें और निखरें । अपने ऊपर अभिमान न करें , सुख दुख को उसका प्रसाद समझ , स्वीकार करें । दुख के बाद सुख भी अवश्य ही आएगा । प्रभु , तूने ये कैसी तैनात बाँधी , हर सुबह के साथ एक रात बाँधी , साथ-साथ बाँधी ! दुख है ही इसलिए कि हम उसे महसूस कर रहे हैं , दुख महसूस न करें तो दुख है ही नहीं । ऐसा सोचते हुए संतुलित रहें ।
हमें सत्य और ईमानदारी के साथ कर्म करते हुए सब कुछ ऊपरवाले को अर्पण कर देना चाहिए । आपने कितना कुछ पाया है , उसका सदा शुक्रिया अदा करना चाहिए । अपने भौतिक सुख-सुवाधाओं का अभिमान न करें , कितने ही लोगों को आपसे भी ज्यादा मिला होगा , प्रकृति चाहे तो एक पल में सारा दृश्य बदल सकती है । आपका काम कर्म करना है , फल का हिसाब किताब रखना छोड़िए । अपने उद्देश्य को याद रखते हुए अपने अंतर्मन का तापमान नियंत्रित रखिये ।
सँवादहीनता की स्थिति कभी न आने दें । घर में सबके साथ बात अवश्य करें । बात न करने से कुछ भी भ्रम पनप सकते हैं व तनाव बढ़ सकता है । बात करते रहने से मन-प्राण हल्का-फुल्का रहता है ।
बेवजह शक न करें । अधिकार के साथ थोडा झगड़ा कर सकते हैं , पर बात बिगड़ने कभी न दें । अपनी तरफ से हर किसी का पूरा ध्यान रखें । सेवा करने से , दुख-सुख में ख्याल रखने से , हाल-चाल पूछते रहने से , हमारे मूक प्यार को अभिव्यक्ति मिल जाती है ।
किसी अभ्यासी से अगर हम ध्यान का प्रशिक्षण लें या पहले से जानते हों तो करें ; पायेंगे कि दुख व भौतिकता तो संसार रूपी नदी में बहती हुई चीजें मात्र हैं । इन सब को साक्षी भाव से देखना व ध्यान में सर्वशक्तिमान को , उसके प्रकाश व कृपा को महसूस करना ही आनंद है ।
अनुशासित व व्यवस्थित रहते हुए दृढ़ता के साथ संतुलित रहें ।
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंफ़ुरसत में .. कुल्हड़ की चाय, “मनोज” पर, ... आमंत्रित हैं!
very good
जवाब देंहटाएंvery good
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