बुधवार, 1 सितंबर 2010

७.

.दृढ इच्छा-शक्ति के साथ व्यवहार सन्तुलित रखें


अवसाद में इच्छा-शक्ति की कमी के कारण कभी व्यक्ति रोने लगता है , दूसरों पर दोष मढ़ता है या कभी प्रायश्चित करता है या बहुत ही गुमसुम रहने लगता है इस सबसे आपको ऊपर आना है खुश रहने वाले , ख़ुशी बाँटने वाले के पास सब आते हैं , पर क्या रोने वाले के पास कोई आना चाहता है ? रोज रोज रोने वाला अकेला पड़ जाता है , सब उससे दूर भागते हैं आपने देखा होगा कि ढही हुई दीवार की कोई एक ईंट भी नहीं छोड़ता और सीधी खड़ी इमारत को कोई हाथ भी नहीं लगाता आपको इमारत बनना है , शान से सीधी खड़ी इमारत ; दीवार की तरह ढहेंगें तो कोई नाम निशान भी बचेगा अपने आपको बचाइये , अपने डॉक्टर स्वयं बनिए दृढ़-इच्छा शक्ति के साथ सब मुमकिन है अपने आपको यकीन दिलाएं कि आप कर्म करते हुए पहले जैसे ही सन्तुलित बन जायेंगे


पुराने लोग कहते थे , मोटा खाओ , मोटा पहनो और मोटा ही सोचो हर सूक्ष्म से सूक्ष्मतर बात पर हमारी पकड़ , हमारी प्रगति की सूचक तो है , पर इसके साथ ही तस्वीर का हर पहलू देख लेने की क्षमता ने हमें सकारात्मक नकारात्मक नजरिया भी दिया बढ़ती उम्मीदों और बढ़ते तनाव ने अवसाद भी दिया महीन हिसाब का कागज़ ही हमारी परेशानियों का कारण बना अगर हम भावनाओं को हर जगह जोड़ें , बहुत बारीकियों में जाएँ , ख़ुशी वाली खबर से खुश होयें और तकलीफ वाली खबर को बहादुरी से हँस कर सहें , तभी जिन्दगी आसान है इस प्रतिस्पर्धा भरी जिन्दगी में सबको चलने दीजिये

' हर ज़र्रा चमकता है , अनवारे इलाही से
हर साँस ये कहती है , हम हैं तो खुदा भी है '


माना कि समस्या के वक्त समस्या के सिवा और कुछ भी नजर नहीं आता आप आँखें बंद करिए , अपने आप से कहिये ' मेरी समस्या कोई बाढ़ या प्रलय नहीं है जो सब कुछ बहा ले जायेगी , सब के साथ कोई कोई समस्या होती है विवेक के साथ मुझे जो करना चाहिए मैं करूँगा परमात्मा मेरे साथ रहें , बस कोई गम नहीं अगर हम सोचते ही रहेंगे , अवसाद से घिर जायेंगे एक समस्या के साथ दूसरी समस्या खड़ी हो जायेगी हमें समस्या का हल ढूंढना है , मन में ठान लेंगे तो कैसे नहीं पार पायेंगे ? भगवान सिद्धार्थ ने एक छोटी चींटी के बार बार गिर कर भी दीवार के ऊपरी छोर पर पहुंचना देख कर प्रेरणा पाई और अपना लक्ष्य हासिल किया


हाँ कभी गलती कर बैठे हों , उसे सुधारने की कोशिश कीजिये परिस्थितियों को सुधारने का प्रयत्न करने में कर्म करना है कभी भी अपनी प्रतिक्रियाओं से हालात को बिगाड़ें मत अपने मन को उठाना है , गिराना नहीं है याद रखिये सत्य हरा भरा है और असत्य दरिद्र , इसलिए सदा सत्य का साथ दीजिये जब तक किसी के जीवन मरण का प्रश्न हो , झूठ मत बोलिए ' एक सच सौ सुख ' एक झूठ सौ झूठ बुलवायेगा अपनी आत्मा अपने ईश्वर के सामने दोषी हो जायेंगे जो लोग झूठ बोल कर , दूसरों को बेवकूफ बना कर , दूसरों का निरादर कर , अपने आपको बड़ा होशियार समझते हैं ; वह अज्ञानी लोग यह नहीं जानते कि वह इस दुनिया में किसी के भी भरोसे के काबिल नहीं हैं आप दृढ़ता से सत्य की राह पर चलिए , जैसे प्रकृति शुद्ध रूप में आपके समक्ष है , आप भी शुद्ध रूप में प्रकृति से लय मिलाइये

अपने आप को कभी भी संशय के भँवर में न डालें । अपने निर्णय खुद लें व उन पर अमल करें । असफलता से बिलकुल न घबरायें । छोटे-छोटे उद्देश्य बनायें , उन्हें पूरा करने की कोशिश करें । वक्त रेत की तरह मुट्ठी से निकलता जाता है , बेहतर है वक्त के साथ चलिए । समय के साथ- साथ अपने जीवन का भी सदुपयोग करिए व जानिये । चलने का नाम ही जीवन है । वक्त न कभी रुका है , न कभी रुकेगा , इसलिए उसके साथ ताल से ताल मिला कर चलिए ।
आप सोचेंगे कि कल अगर मैं ठीक हो भी गया तो लोग क्या कहेंगे , इसे क्या हुआ था । आप कहेंगे कल मैं मानसिक तौर पर थोडा परेशान था , थोडा डिस्टर्बड था बस । बुलन्द इमारत की तरफ कोई आँख टेढ़ी करके भी नहीं देखता । ऐसा दृढ इच्छा शक्ति के साथ निश्चय ही कर पायेंगे । यकीन रखें , जिस दिन ये निर्णय ले लेंगे , ' जब जागे तभी सबेरा ' चरितार्थ हो जाएगा । आपकी जिन्दगी की सुबह हो चुकी है , चारों तरफ प्रकाश फ़ैल रहा है , महसूस कीजिये ।
आपने देखा होगा कि विपदा के समय कभी आपको अचानक दैवीय सहायता प्राप्त हो जाती है । कोई इन्सान भगवान् का अंश बन कर अचानक आपकी सहायता कर देता है । इसीलिये कहते हैं सब में ईश्वर है , सब में ईश्वर समझ कर सबकी सहायता के लिये तत्पर रहो । जिस दिन आप किसी की आड़े वक्त में सहायता करोगे बिना कुछ पाने की उम्मीद के साथ , आप खुद उस के लिये ईश्वर बन जाओगे । अपने आस-पास जिसका भी सहारा बन सकते हो बन जाओ , आपको खुद ही सहारा मिल जाएगा ।


" Do not complain of sorrows , bacause it is far from etiquette. Happiness can not be had without undergoing sufferings ."

दुख की शिकायत मत करो । इन्सान से शिकायत करोगे सभ्यता के खिलाफ भी है , बात भी बिगड़ेगी । भगवान् से बात कर सकते हैं । दुख आने में भी रहस्य है , प्रकृति चाहती है हम और मंजें और निखरें । अपने ऊपर अभिमान न करें , सुख दुख को उसका प्रसाद समझ , स्वीकार करें । दुख के बाद सुख भी अवश्य ही आएगा । प्रभु , तूने ये कैसी तैनात बाँधी , हर सुबह के साथ एक रात बाँधी , साथ-साथ बाँधी ! दुख है ही इसलिए कि हम उसे महसूस कर रहे हैं , दुख महसूस न करें तो दुख है ही नहीं । ऐसा सोचते हुए संतुलित रहें ।
हमें सत्य और ईमानदारी के साथ कर्म करते हुए सब कुछ ऊपरवाले को अर्पण कर देना चाहिए । आपने कितना कुछ पाया है , उसका सदा शुक्रिया अदा करना चाहिए । अपने भौतिक सुख-सुवाधाओं का अभिमान न करें , कितने ही लोगों को आपसे भी ज्यादा मिला होगा , प्रकृति चाहे तो एक पल में सारा दृश्य बदल सकती है । आपका काम कर्म करना है , फल का हिसाब किताब रखना छोड़िए । अपने उद्देश्य को याद रखते हुए अपने अंतर्मन का तापमान नियंत्रित रखिये ।
सँवादहीनता की स्थिति कभी न आने दें । घर में सबके साथ बात अवश्य करें । बात न करने से कुछ भी भ्रम पनप सकते हैं व तनाव बढ़ सकता है । बात करते रहने से मन-प्राण हल्का-फुल्का रहता है ।
बेवजह शक न करें । अधिकार के साथ थोडा झगड़ा कर सकते हैं , पर बात बिगड़ने कभी न दें । अपनी तरफ से हर किसी का पूरा ध्यान रखें । सेवा करने से , दुख-सुख में ख्याल रखने से , हाल-चाल पूछते रहने से , हमारे मूक प्यार को अभिव्यक्ति मिल जाती है ।
किसी अभ्यासी से अगर हम ध्यान का प्रशिक्षण लें या पहले से जानते हों तो करें ; पायेंगे कि दुख व भौतिकता तो संसार रूपी नदी में बहती हुई चीजें मात्र हैं । इन सब को साक्षी भाव से देखना व ध्यान में सर्वशक्तिमान को , उसके प्रकाश व कृपा को महसूस करना ही आनंद है ।
अनुशासित व व्यवस्थित रहते हुए दृढ़ता के साथ संतुलित रहें ।

3 टिप्‍पणियां:

आप टिप्पणी दें न दें ,आपके दिल में मुस्कान हो ,जोश होश और प्रेरणा का जज्बा हो ,जो सदियों से बिखरती इकाइयों को जोड़ने के लिए जरुरी है ,बस वही मेरा उपहार है ....