७.शौक पालिये , सृजनात्मक शक्तियों का विकास कीजिये
अगर अब तक आपने कोई शौक नहीं पाला , तो अब पालिये । नकारात्मक सोच के आते ही अगर आप हॉबी वाले काम करना शुरू कर देंगें तो आप पायेंगे कि जल्दी ही आपका मन उनमें रम गया है और नकारात्मक विचार हवा हो गए हैं । शौक में बागबानी , पेन्टिंग , स्केचिंग , किताबें पढ़ना , फ़िल्मी गाने सुनना , भजन , शेरो-शायरी सुनना व गाना , नृत्य करना , इनडोर आउट-डोर गेम्ज व क्राफ्ट-वर्क कुछ भी शामिल कर सकते हैं । गृहणियों की हॉबी कढ़ाई करना , सिलाई करना , घर सजाना , रेसिपीज बनाना व सिखाना या सीखना कुछ भी हो सकता है । रोजमर्रा के काम करते हुए कुछ वक्त अपने शौक के लिये जरुर निकालें ।
नकारात्मक विचार अगर पीछा न छोड़ें और आपके पास खाली वक्त भी हो , तो कोई क्लासेज ज्वाइन कर लें , मसलन कम्प्यूटर कोर्स , कुकरी कोर्स , क्राफ्ट वर्क या पर्सनेलिटी डैवल्पमेंट कोर्स । सीखने के साथ साथ वक्त भी कटेगा और अपने विचारों पर विजय भी पा सकेंगे । एक वक्त पर दिमाग में एक ही विचार रह सकेगा , तनाव या फिर उसे दिशा देने के लिये जो भी उद्यम आप अपनी तरफ से करेंगे , जिसे हम पुरुषार्थ भी कह सकते हैं । सीखने की कोई उम्र नहीं होती , आप सारी उम्र हर किसी से सीखने की जिज्ञासा रखिये । कोई अगर आपसे कुछ सीखना चाहता है तो जरुर सिखाइए ; सिखाने से आपका हुनर बढ़ता है , अनुभव बढ़ता है , आप महारत हासिल करते हैं व एक अजीब सी तृप्ति का अहसास होता है ।
खाली वक्त में कुछ न कुछ जरुर कीजिये । अपने दिन को , अपने वक्त को एक अर्थ दीजिये । अपने काम को अपना शौक बना लीजिये , अब वो आपको काम लगेगा ही नहीं । अपने शौक से कुछ रचनात्मक करने की कोशिश कीजिये । शायरों की बात करें तो लगता है कि उनका गम कितना गहरा था , वो उसमें डूबे और उन्होंने कितने ही नायाब शेरों और गजलों का सृजन कर हिन्दुस्तान की शायरी को समृद्ध कर दिया । उनका गम भी सार्थक हो गया । ग़ज़लें सुनेंगे तो पायेंगे कि अपना दुख उनके दुख के सामने कितना कम है । उन्होंने अपने गम को ही अपने गम की दवा बना लिया था ।
अगर आप क्राफ्ट बनाते हैं , बेलबूटे काढ़ते हैं , कोई प्रोजेक्ट हाथ में लेते हैं , फिर जो कृति तैयार होती है , आपको कितना सुकून देती है कि आप इसके रचयिता हैं ।
आपको हर दिन थोड़ा सा वक्त अपने शौक के लिये जरुर निकालना चाहिए । सामाजिक उत्सवों में सज धज कर जाएँ । कभी घर में बेवजह गुनगुनाएँ ।
किसी ने ठीक ही कहा है " रोटी के लिये जरुरी न हो तो सेहत के लिये श्रम कीजिये " । इससे शारीरिक के साथ साथ मानसिक सेहत भी ठीक रहेगी । शारीरिक श्रम करने वालों को पत्थर पर लेट कर भी क्या गहरी नींद आती है । जब आप किसी काम को करते हैं तो शारीरिक तौर पर ही नहीं , मानसिक रूप से भी उसमें रम जाते हैं । अगर काम आपकी पसंद का हो तो उसे करने में आनन्द आता है , तो क्यों न हम इस आनन्द को हर छोटे बड़े काम से जोड़ लें , फिर गम कहाँ है ?
गुरुवार, 26 अगस्त 2010
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