गुरुवार, 24 जून 2010

३.


.नैतिक मूल्य निर्धारित कीजिये व नियमों का पालन कीजिये
१ झूठ से बचें , ईमानदारी का पालन करें ।
२ गलत व्यवहार न करें ।
३ दूसरों का भला करें , मगर कुछ पाने की उम्मीद न करें , ' नेकी कर दरिया में डाल ' वाली नीति अपनाएँ ।
४ अपने आसपास सबका ध्यान रखें , तकलीफ में साथ दें ।
५ राग द्वेष न रखें । किसी से बहुत प्यार है इस भावना से भी बचें और वैर से भी बचें । आपको अपना कर्तव्य निभाना है । अगर आपका मन कहीं टूटता है , तो दूसरों को माफ़ कर दें । हमारा जितना जितना साथ पाना लिखा होता है , उतना ही हम पाते हैं ।
किसी से ईर्ष्या न रखें । अपने मन को समझाएँ कि मेरे भाग्य के सुख दुख कोई दूसरा नहीं ले सकता । जो मुझे पाना है वो कोई और नहीं पा सकता , फिर दूसरे के भाग्य से ईर्ष्या कैसी ? दूसरे की चिन्ता न कीजिये , अपना रास्ता आसान बनाइये ।
६ दोस्त बनाइये और उनके प्रति कार्य और मन से हमेशा सच्चे बने रहें । मित्र हमारी जिन्दगी में रँग भर देते हैं । उनकी आव-भगत में , उनके साथ हँसने-गाने में हमारा मूड बदलते देर नहीं लगती । बेशक कम मित्र हों , सच्चे और ईमानदार हों ।
७ सच्चरित्रता अपनाएँ ।
यहाँ मेरा आशय ईमानदार प्रणय संबंधों से है । शादी के अलावा कोई और प्रणय संबंध कभी न बनाइये । न ही कभी इस बारे में सोचिये । क्या कभी आप अपने माँ या पिता का नाम किसी और के साथ लिया जाना पसन्द करेंगे ? इसी तरह आपके बच्चे भी कभी अपने माँ बाप के नाम पर कोई लांछन लगाया जाना पसन्द नहीं करेंगे । आपकी एक गल्ती किस सीमा तक जा सकती है ? वैसे भी जो आप साथी को दे रहे हैं , वही पायेंगे । इन रिश्तों में प्यार , भावनात्मक सुरक्षा पनपनी चाहिए । इस सबका आपके बच्चों पर , परिवार पर गहरा असर पड़ता है । ' स्वर्ग इसी धरती पर है ' इसे अपने घर में महसूस कीजिये ।
८ परिवार की नीँव में निः स्वार्थ प्रेम का बीज बोइये ।
बच्चों को सुन्दर , सुरक्षित व समृद्ध बचपन दीजिये । उन्हें आत्म-निर्भर बनाते हुए उनके मित्र बन जाइए । उनका सुख दुख आपका सुख दुख है । अपनी रुचियाँ उन पर लादें नहीं । उनकी पसन्द नापसन्द , स्वभाव व आकांक्षाएँ जानते हुए , मदद करते हुए उन्हें निर्देशित करें । उन्हें पर्याप्त स्वतन्त्रता भी दें । हर बच्चे के अन्दर कोई न कोई क्षमता छिपी होती है उसे पहचानें और बाहर लाने का प्रयास करें ।
वातावरण व परवरिश दो बड़े कारण हैं किसी इन्सान को अच्छाई या बुराई की तरफ ले जाने वाले । बच्चों को छोटी छोटी बातेँ बताते रहना चाहिए कि किस तरह उन्हें संभल कर चलना है । अगर वो गल्ती कर भी लेते हैं तो वजह ढूँढ कर उन्हें समझाएं व कारण को दूर करने की कोशिश करें । उन्हें भरपूर भावनात्मक सुरक्षा देने के साथ रचनात्मक कार्यों के लिए प्रेरित करें , प्रोत्साहन दें । उनसे बहुत ज्यादा अपेक्षाएं मत रखिये । बहुत ज्यादा उम्मीद रखने से बच्चे को तनाव होता है और पूरा न उतर पाने पर बच्चा आपसे ज्यादा टूटता है । वैसे भी ठंडे दिमाग से काम करने पर ही अच्छे परिणाम मिलते हैं । आपके लिए अपना बच्चा ही सर्वोपरि होना चाहिए , बाकी बातेँ गौण हैं । अपने आस पास सब बच्चों से प्यार करें । अपना कर्तव्य निभाते चलिए । इनका बचपन इनके भविष्य की नीँव है । इस वक्त का तनाव अवसाद का रूप ले सकता है , इसलिए इन फूलों की मिट्टी , खाद , पानी , धूप , छाया का पूरा ध्यान रखें ।
९ ईश्वर की रजा में खुश रहना सीखिए ।
जो कुछ हमें मिला है उसके लिए प्रभु का धन्यवाद कीजिये । क्या आप लाखों रूपये लेकर बदले में एक आँख या हाथ या पैर देंगे ? ईश्वर ने इतनी अनमोल चीजें हमें दी हैं ; मान लीजिये हम जानवर या पक्षी का जन्म पाते , इस बुद्धि के बिना क्या करते ? बुद्धि का सदुपयोग कीजिये व कर्म में यकीन रखिये । सुख दुख आने जाने हैं , इनसे विचलित न होइए।
यह नियम अपने लिए बनाइये , इससे आपको असीम मानसिक शांति मिलेगी । आप देखेंगे कि छोटी छोटी बातों से आप परेशान नहीं होते , जीवन को एक नई दिशा मिल जाती है । छोटे छोटे उद्देश्य बड़े काम के हैं । हमारे कर्म ही हमारी पहचान हैं । हमारे व्यक्तित्व का दर्पण हैं । भविष्य में ये ही हमारा भाग्य निर्धारित करेंगे ।

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