सोमवार, 14 जून 2010

१.


मानसिक अवसाद है क्या ? सबसे पहले यह जान लेते हैं । जब आप बाहरी दुनिया से अपने अन्तर्मन का ताल-मेल बैठाना छोड़ देते हैं ; सोते -जागते , काम करते हुए भी आपका मन वर्तमान में न होकर , अपनी एक ही समस्या की तरफ लगा हुआ रहता है । बाहरी दुनिया में आपको कुछ भी अच्छा नहीं लगता , न खाना , न पीना और न ही कोई और काम । कभी कभी व्यक्ति आदतन बहुत अधिक खाना भी शुरू कर देता है । अवसाद एक तरह का समस्या से पलायन है । इसके लिए परिस्थितियाँ व कमजोर मनस्थिति ही जिम्मेदार है । जब भी व्यक्ति किसी समस्या से या प्रतिकूल परिस्थिति ( जो मनोनुकूल नहीं होती ) से गुजरता है , उसका सामना करने या स्वीकार करने के बजाय अगर वह हार मान लेता है , तभी यह स्थिति आती है । इसमें दिमाग हर वक़्त चक्की की तरह चलता रहता है , वर्तमान से भागता रहता है , कुछ भी अच्छा नहीं लगता , आत्म-विशवास की कमी के साथ नकारात्मक विचार घर कर जाते हैं ।

जीवन बाहर की दुनिया से मनुष्य की भीतरी दुनिया का एक अन्तहीन समझौता है । जो इसे जानता है वह कभी तनाव ग्रस्त नहीं होता । _ एच स्पेंसर


कारणों पर विचार करने से पहले हम समाधान के बारे में विचार कर लेते हैं , क्योंकि अवसादग्रस्त व्यक्ति के लिए एक एक पल काटना मुश्किल होता है , जल्दी से जल्दी इस स्थिति से बाहर आ जाना चाहिए । जितना वक्त बीतता जाएगा , समस्या गहरी होती जायेगी व उससे छुटकारा पाने में ज्यादा वक्त लगेगा।


१.कर्म में यकीन रखिये
बिना एक भी पल गँवाए कुछ न कुछ काम कीजिये । जो भी काम आप पहले करते थे , वैसे ही कीजिये , खाली न बैठें । खाली होते ही आपका दिमाग नकारात्मक सोचों से भर जाएगा । हो सकता है आपका अवसाद आपको बिस्तर की तरफ धकेले , नहीं , आपको मन के इस शत्रु से लड़ना है । आप काम करेंगे , काम करते करते आपको पता भी नहीं चलेगा कि कब आपका मन वर्तमान में रम गया है । शरीर पर नियन्त्रण ही मन पर नियन्त्रण ला सकता है।


अब सवाल ये उठता है कि ऐसे में क्या काम करने चाहिए। हमारा कर्म-क्षेत्र हमारे आस-पास बिखरा पड़ा है । हम जिस घर में जन्म लेते हैं , रहते हैं , आस-पास हमारा समाज है । जैसे जैसे हम बड़े होते हैं परिस्थितियाँ , विचार , महत्वाकांक्षाएं , साधन हमारा मार्ग तय करते जाते हैं । बच्चे हैं तो अपनी चीजें व्यवस्थित रखें , वक्त पर नहाना , पढ़ना , बड़ों की इजाजत के साथ मनोरंजन कर सकते हैं । गृहणी हैं तो घर के कितने ही काम , बच्चों की , बड़ों की देखभाल कर सकती हैं । अपनी वार्डरोब खोल कर करीने से साड़ियाँ कपड़े जमाइए , घर को सजाइये । बाहर काम करने वाली गृहणियों व गृहस्वामियों के लिए तो अनगिनत काम हैं ।
यह याद रखें कि सेवा पहले अपने घर से शुरू होती है ; वक़्त मिले तो समाज सेवा करें । घर में सबके साथ रिश्ते सहज होते ही आपका मन शान्त होने लगेगा।
' कर्म ही पूजा है '
' निरन्तर कर्म करते हुए सौ साल जीने की इच्छा रखो '
कर्म से ही आप अपना भाग्य बनायेंगे , आज के कर्म से आप अपना वर्तमान ही नहीं भविष्य भी सँवारेंगे । जिन कामों को करने से पहले आपको ख़ुशी मिला करती थी , वह तो जरुर कीजिए ।

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