गुरुवार, 30 जून 2011

१३.

कुछ काम की बातेँ ..
नकारात्मक से सकारात्मक का परिवर्तन लाने के लिये सबसे पहले छोटी छोटी वस्तुओं के बारे में सकारात्मक विचार आरम्भ करो । लम्बे समय से चली आ रही अपनी नकारात्मक मानसिक प्रवृत्ति को छोटे छोटे सकारात्मक विचारों से सराबोर कर दो , जैसे ' मैं कर सकता हूँ ' , ' यह बिलकुल संभव है ' , ' यह अच्छा साबित होने जा रहा है ' । मन में ऐसे सकारात्मक विचार भरने मात्र से एक ताज़ा , छोटा मानसिक मार्ग बनना आरम्भ हो जाएगा । कुछ समय तक प्रतिदिन दोहराने से तथा और अधिक शक्तिशाली विचारों द्वारा इनका अनुसरण करने से , यह अभ्यास मन में बन रहे इस मार्ग को स्थाई और अन्ततः पुराने नकारात्मक विचार को काट कर मिटा देगा । तब आपके मन का प्रबल विचार एक सकारात्मक मानसिक प्रवृत्ति का होगा । _ स्वेट मार्डेन
अवसाद ग्रस्त मन चुप्पी , शांति , मरणान्तक नीरवता को यूँ ग्रहण करता है जैसे यही उसकी नियति हो , आशा और उत्साह के लिये एक खिड़की क्या झरोखा भी खुला नहीं रखता , इस नैराश्य से लगाव भी तो नहीं , जानता है तिल तिल मर रहा है , फिर भी ! इच्छा , आशा , विष्वास और कर्म का दामन थामे बिना नैराश्य की नदी से बाहर नहीं आ सकता। _स्वयंम
मैं अपनी दृष्टि और मनोवृत्तियाँ उस महान सृष्टा की विशालता की ओर केन्द्रित करता हूँ । ऐसा करने से मेरे मन में प्रकाश और उत्साह का महान समुद्र लहराने लगेगा । मेरे जीवनसंग्राम में आधी विजय मेरे दृढ निश्चय और संकल्प द्वारा हो ही चुकी है । केवल आधी विजय प्राप्त करने के लिये मुझे काम करना है ।
" आत्म निन्दा घोर अपराध है , इससे सृष्टि और सृष्टिकर्ता दोनों का ही अनादर होता है । "_स्वेट मार्डेन
हमें सदा ही प्रगति के विचारों से , रचनात्मक विचारों से , निर्माणात्मक विचारों से , सृजनात्मक भावों से ,अन्वेषण से भरे भावों से तथा सबसे अधिक आशावाद से हमेशा ही भरपूर रहना चाहिए ।निराशा के सामान दूसरा पाप नहीं है । पाप रूपिणी निराशा को अपने शब्द कोष से हटा देना चाहिए ।_ स्वामी रामतीर्थ
हमेशा आपके कर्म खुशियाँ ही लायें , यह जरुरी नहीं है , लेकिन यह भी सच है कि बिना कर्म के कोई ख़ुशी मिलती नहीं है । _ बेंजामिन
कर्म करने वालों में शामिल हों , क्योंकि उनकी सँख्या कम होने के कारण प्रतियोगिता बहुत कम है और आपकी सफलता के अवसर ज्यादा । _ इन्दिरा गाँधी
प्रसन्नता और उल्लास जब स्वभाव में उतर आए तो वही जप तप और साधना है । यदि मन को न सँभाल पाए तो दुखी रहोगे । मन की दिशा ठीक कर लोगे , तो दशा स्वयम ठीक हो जायेगी ।_ सुधांशु जी महाराज
आनंद चाहते हो , आलोक चाहते हो ? तो सबसे पहले अंतस में खोजो । जो वहाँ खोजता है , उसे फिर और कहीं नहीं खोजना पड़ता । जो वहाँ नहीं खोजता , वह खोजता ही रहता है , किन्तु पाता नहीं है । _ओशो
ईश्वर सब जगह व्याप्त है , फिर भी निराश मन उसकी उपस्थिति को महसूस नहीं कर पाता । एक माँ ने अपने बच्चे को जब नमाज पढना सिखाया तो साथ में कहा कि खुदा तुम्हारे लिये मिश्री का प्रसाद रख जाता है । जब भी बच्चा नमाज पढ़ कर आँख खोलता , पास में मिश्री पाता । एक दिन माँ गुजर गईं । किसी दिन जब बच्चे ने नमाज पढ़ी , खुदा को लगा इस बच्चे का विश्वास नहीं टूटना चाहिए , खुदा ने मिश्री का प्रसाद बच्चे के पास ला कर रख दिया । नैराश्य के गहनतम पलों में हमारे मन को भी यूँ ही टिमटिमाना चाहिए ....खुदा , मेरा प्रसाद , मेरी मिश्री , कब ? कब ?
हमेशा उसे महसूस कीजिये । निराश मन की आशा वही तो है । कुछ यूँ गुनगुनाइए ....
' इतनी शक्ति हमें देना दाता
मन का विश्वास कमजोर हो न '
'हे प्रभु आनन्द दाता , ज्ञान हमको दीजिये
जल उठें मोती की मानिन्द
प्यार हमको कीजिये '
'हम होंगे कामयाब एक दिन , एक दिन ' ...

2 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर विचारों के अमृत बिंदुओं से मन को आनंद आया.
    आपके इस ब्लॉग का भी अनुसरण कर लिया है.
    बहुत बहुत आभार.

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आप टिप्पणी दें न दें ,आपके दिल में मुस्कान हो ,जोश होश और प्रेरणा का जज्बा हो ,जो सदियों से बिखरती इकाइयों को जोड़ने के लिए जरुरी है ,बस वही मेरा उपहार है ....