शनिवार, 25 सितंबर 2010

८.

१०.विचारों का आदान प्रदान करते हुए चित्त को हल्का रखिये

दोस्तों के साथ अपनी समस्याएँ शेयर कीजिये , वरना विचारों का ट्रैफिक जैम तनाव में बदल जायेगा , सबसे बातेँ करते हुए हल्के-फुल्के बने रहिये । परेशानियाँ अगर हमारे दिल में इकट्ठी हो जाएँ तो आउट-गोइंग बार होते ही , अवसाद का रूप ले सकती है । इसलिए शेयर कीजिये , दोस्त बनाइये कुछ बहुत करीबी ।

मन के ख्यालों को दबाओ मत , वरना नासूर बन जायेगा ।

११.आराम करना भी सीखिये

अगर हम दिमाग से , चित्त से न थकें तो शारीरिक थकान हमें महसूस ही नहीं होती । अवसाद में हमें मानसिक थकान बहुत महसूस होती है , इसलिए चौराहे पर जैसे ज्यादा गाड़ियाँ होते ही हरी बत्ती जल जाती है , उसी तरह विचारों का ज्यादा बोझा होते ही आप हरी बत्ती जलाइये और कर्म में जुट जाइए । काम से जब थकें तभी अपने आप से कहें कि अब मैं लाल बत्ती जला कर आराम कर लेता हूँ । आराम भी शरीर के लिये बहुत जरूरी है । जब भी लेटें , नकारात्मक नहीं सोचना तो ब्लैंक (खाली) होने से भी बचें । अच्छा अच्छा सोचिये , जो लोग आप से प्यार करते हैं उनके बारे में सोचें , जिनसे आप प्यार करते हैं उनके बारे में खुशफहमियाँ रखिये ।

अब आप ये तय कर लीजिये कि कब कब आपको लाल बत्ती जलानी है और कब कब हरी बत्ती ।

बुधवार, 1 सितंबर 2010

७.

.दृढ इच्छा-शक्ति के साथ व्यवहार सन्तुलित रखें


अवसाद में इच्छा-शक्ति की कमी के कारण कभी व्यक्ति रोने लगता है , दूसरों पर दोष मढ़ता है या कभी प्रायश्चित करता है या बहुत ही गुमसुम रहने लगता है इस सबसे आपको ऊपर आना है खुश रहने वाले , ख़ुशी बाँटने वाले के पास सब आते हैं , पर क्या रोने वाले के पास कोई आना चाहता है ? रोज रोज रोने वाला अकेला पड़ जाता है , सब उससे दूर भागते हैं आपने देखा होगा कि ढही हुई दीवार की कोई एक ईंट भी नहीं छोड़ता और सीधी खड़ी इमारत को कोई हाथ भी नहीं लगाता आपको इमारत बनना है , शान से सीधी खड़ी इमारत ; दीवार की तरह ढहेंगें तो कोई नाम निशान भी बचेगा अपने आपको बचाइये , अपने डॉक्टर स्वयं बनिए दृढ़-इच्छा शक्ति के साथ सब मुमकिन है अपने आपको यकीन दिलाएं कि आप कर्म करते हुए पहले जैसे ही सन्तुलित बन जायेंगे


पुराने लोग कहते थे , मोटा खाओ , मोटा पहनो और मोटा ही सोचो हर सूक्ष्म से सूक्ष्मतर बात पर हमारी पकड़ , हमारी प्रगति की सूचक तो है , पर इसके साथ ही तस्वीर का हर पहलू देख लेने की क्षमता ने हमें सकारात्मक नकारात्मक नजरिया भी दिया बढ़ती उम्मीदों और बढ़ते तनाव ने अवसाद भी दिया महीन हिसाब का कागज़ ही हमारी परेशानियों का कारण बना अगर हम भावनाओं को हर जगह जोड़ें , बहुत बारीकियों में जाएँ , ख़ुशी वाली खबर से खुश होयें और तकलीफ वाली खबर को बहादुरी से हँस कर सहें , तभी जिन्दगी आसान है इस प्रतिस्पर्धा भरी जिन्दगी में सबको चलने दीजिये

' हर ज़र्रा चमकता है , अनवारे इलाही से
हर साँस ये कहती है , हम हैं तो खुदा भी है '


माना कि समस्या के वक्त समस्या के सिवा और कुछ भी नजर नहीं आता आप आँखें बंद करिए , अपने आप से कहिये ' मेरी समस्या कोई बाढ़ या प्रलय नहीं है जो सब कुछ बहा ले जायेगी , सब के साथ कोई कोई समस्या होती है विवेक के साथ मुझे जो करना चाहिए मैं करूँगा परमात्मा मेरे साथ रहें , बस कोई गम नहीं अगर हम सोचते ही रहेंगे , अवसाद से घिर जायेंगे एक समस्या के साथ दूसरी समस्या खड़ी हो जायेगी हमें समस्या का हल ढूंढना है , मन में ठान लेंगे तो कैसे नहीं पार पायेंगे ? भगवान सिद्धार्थ ने एक छोटी चींटी के बार बार गिर कर भी दीवार के ऊपरी छोर पर पहुंचना देख कर प्रेरणा पाई और अपना लक्ष्य हासिल किया


हाँ कभी गलती कर बैठे हों , उसे सुधारने की कोशिश कीजिये परिस्थितियों को सुधारने का प्रयत्न करने में कर्म करना है कभी भी अपनी प्रतिक्रियाओं से हालात को बिगाड़ें मत अपने मन को उठाना है , गिराना नहीं है याद रखिये सत्य हरा भरा है और असत्य दरिद्र , इसलिए सदा सत्य का साथ दीजिये जब तक किसी के जीवन मरण का प्रश्न हो , झूठ मत बोलिए ' एक सच सौ सुख ' एक झूठ सौ झूठ बुलवायेगा अपनी आत्मा अपने ईश्वर के सामने दोषी हो जायेंगे जो लोग झूठ बोल कर , दूसरों को बेवकूफ बना कर , दूसरों का निरादर कर , अपने आपको बड़ा होशियार समझते हैं ; वह अज्ञानी लोग यह नहीं जानते कि वह इस दुनिया में किसी के भी भरोसे के काबिल नहीं हैं आप दृढ़ता से सत्य की राह पर चलिए , जैसे प्रकृति शुद्ध रूप में आपके समक्ष है , आप भी शुद्ध रूप में प्रकृति से लय मिलाइये

अपने आप को कभी भी संशय के भँवर में न डालें । अपने निर्णय खुद लें व उन पर अमल करें । असफलता से बिलकुल न घबरायें । छोटे-छोटे उद्देश्य बनायें , उन्हें पूरा करने की कोशिश करें । वक्त रेत की तरह मुट्ठी से निकलता जाता है , बेहतर है वक्त के साथ चलिए । समय के साथ- साथ अपने जीवन का भी सदुपयोग करिए व जानिये । चलने का नाम ही जीवन है । वक्त न कभी रुका है , न कभी रुकेगा , इसलिए उसके साथ ताल से ताल मिला कर चलिए ।
आप सोचेंगे कि कल अगर मैं ठीक हो भी गया तो लोग क्या कहेंगे , इसे क्या हुआ था । आप कहेंगे कल मैं मानसिक तौर पर थोडा परेशान था , थोडा डिस्टर्बड था बस । बुलन्द इमारत की तरफ कोई आँख टेढ़ी करके भी नहीं देखता । ऐसा दृढ इच्छा शक्ति के साथ निश्चय ही कर पायेंगे । यकीन रखें , जिस दिन ये निर्णय ले लेंगे , ' जब जागे तभी सबेरा ' चरितार्थ हो जाएगा । आपकी जिन्दगी की सुबह हो चुकी है , चारों तरफ प्रकाश फ़ैल रहा है , महसूस कीजिये ।
आपने देखा होगा कि विपदा के समय कभी आपको अचानक दैवीय सहायता प्राप्त हो जाती है । कोई इन्सान भगवान् का अंश बन कर अचानक आपकी सहायता कर देता है । इसीलिये कहते हैं सब में ईश्वर है , सब में ईश्वर समझ कर सबकी सहायता के लिये तत्पर रहो । जिस दिन आप किसी की आड़े वक्त में सहायता करोगे बिना कुछ पाने की उम्मीद के साथ , आप खुद उस के लिये ईश्वर बन जाओगे । अपने आस-पास जिसका भी सहारा बन सकते हो बन जाओ , आपको खुद ही सहारा मिल जाएगा ।


" Do not complain of sorrows , bacause it is far from etiquette. Happiness can not be had without undergoing sufferings ."

दुख की शिकायत मत करो । इन्सान से शिकायत करोगे सभ्यता के खिलाफ भी है , बात भी बिगड़ेगी । भगवान् से बात कर सकते हैं । दुख आने में भी रहस्य है , प्रकृति चाहती है हम और मंजें और निखरें । अपने ऊपर अभिमान न करें , सुख दुख को उसका प्रसाद समझ , स्वीकार करें । दुख के बाद सुख भी अवश्य ही आएगा । प्रभु , तूने ये कैसी तैनात बाँधी , हर सुबह के साथ एक रात बाँधी , साथ-साथ बाँधी ! दुख है ही इसलिए कि हम उसे महसूस कर रहे हैं , दुख महसूस न करें तो दुख है ही नहीं । ऐसा सोचते हुए संतुलित रहें ।
हमें सत्य और ईमानदारी के साथ कर्म करते हुए सब कुछ ऊपरवाले को अर्पण कर देना चाहिए । आपने कितना कुछ पाया है , उसका सदा शुक्रिया अदा करना चाहिए । अपने भौतिक सुख-सुवाधाओं का अभिमान न करें , कितने ही लोगों को आपसे भी ज्यादा मिला होगा , प्रकृति चाहे तो एक पल में सारा दृश्य बदल सकती है । आपका काम कर्म करना है , फल का हिसाब किताब रखना छोड़िए । अपने उद्देश्य को याद रखते हुए अपने अंतर्मन का तापमान नियंत्रित रखिये ।
सँवादहीनता की स्थिति कभी न आने दें । घर में सबके साथ बात अवश्य करें । बात न करने से कुछ भी भ्रम पनप सकते हैं व तनाव बढ़ सकता है । बात करते रहने से मन-प्राण हल्का-फुल्का रहता है ।
बेवजह शक न करें । अधिकार के साथ थोडा झगड़ा कर सकते हैं , पर बात बिगड़ने कभी न दें । अपनी तरफ से हर किसी का पूरा ध्यान रखें । सेवा करने से , दुख-सुख में ख्याल रखने से , हाल-चाल पूछते रहने से , हमारे मूक प्यार को अभिव्यक्ति मिल जाती है ।
किसी अभ्यासी से अगर हम ध्यान का प्रशिक्षण लें या पहले से जानते हों तो करें ; पायेंगे कि दुख व भौतिकता तो संसार रूपी नदी में बहती हुई चीजें मात्र हैं । इन सब को साक्षी भाव से देखना व ध्यान में सर्वशक्तिमान को , उसके प्रकाश व कृपा को महसूस करना ही आनंद है ।
अनुशासित व व्यवस्थित रहते हुए दृढ़ता के साथ संतुलित रहें ।

सोमवार, 30 अगस्त 2010

६.

.जीवन अनमोल है , स्वस्थ मानसिकता रखिये

कुछ लोग जीवन से भागने में ही समस्या का समाधान खोजने लगते हैंउनका रुख आत्महत्या की तरफ होता हैक्या उन्होंने कभी सोचा है कि जिस मौत को वो गले लगाने जा रहे हैं , वह कितनी तकलीफदेह होती है ? कौन जानता है कि मौत के बाद हमें इस से भी भयावह परिस्थितियों का सामना करना पड़े ? अभी तो हम शरीर दिमाग से समर्थ हैं परिस्थितियों को बदलने की क्षमता रखते हैं , बाद की बात कौन जानता हैबहादुरी भागने में नहीं डट कर सामना करने में हैहारना या जीतना मायने नहीं रखता , सामना करना मायने रखता हैकर्मफल प्रकृति के हाथ में हैआग जली तो तपिश होगी ही , बारिश हुई तो नमी होगी ही ; इसी प्रकार प्रकृति के नियमानुसार हम कर्मों का फल पाते हैं

आत्महत्या का विचार भी मन में लाना पाप है हम अपनी मर्जी से इस दुनिया में आए हैं , ही अपनी मर्जी से इस दुनिया से जायेंगेये विधान ऊपर वाले ने अपने हाथ में रखा हुआ हैहम उसके हाथ की कठपुतलियाँ हैं , उसने धागे को ज़रा कसा या ढीला किया , हम असन्तुलित हो जाते हैंउसने जब हमें खुशियाँ दीं , हम सोचते हैं , मैंने किया , मैंने पाया ; अभिमान से भर जाते हैंकभी उसका शुक्रिया अदा नहीं करतेजब ज़रा दुख आए , हम हारने लगते हैंकिस्मत को , खुदा को , वक्त को , व्यक्तियों को दोष देने लगते हैंइसमें भी प्रभू का भेद जानोवो चाहता है हम उसे याद करें , उसे पुकारें , भक्त की आर्त पुकार पर प्रभु दौड़ा चला आता हैहम उसे महसूस तो करें , उसका आशीर्वाद पा लेंगे

जिन्दगी की परीक्षाओं में फेल होने पर छोटे बच्चे क्या बड़े बड़े भी घर छोड़ने की , दुनिया छोड़ने की बात सोचने लग जाते हैंउनसे ये विनती है कि कभी भूल कर भी ये विचार मन में लायेंउनके माँ-बाप , परिवार के लोग , सब उनसे कितना स्नेह करते हैं कि उन्होंने सब उम्मीदें अपने इस बच्चे से लगा लींवो अपने बच्चे को सबसे ऊपर देखना चाहते थे , बस यही उनका अपराध बन गयाउन्होंने कभी तुम्हें डांटा होगाबच्चे , अपने आपको उनकी जगह रख कर सोचो तो पाओगे कि तुम भी इसी तरह अपने बच्चों से उम्मीद करोगे और ऐसा ही व्यवहार करोगेदुनिया से जाने का मतलब एक मिटने वाला कलंक अपने अपने प्रियजनों के नाम पर लगा देनावो जो तुम्हें इतना प्यार करते हैं , इस अंजाम के बारे में सोच भी नहीं सकतेजाने के बाद वापसी अपने हाथ नहीं होगी , फिर हम लाख चाहें , हम लौटें , हमारे बस की बात नहीं होगीजाते जाते आधे बीच में लटक गए तब ? त्रिशंकु की तरह उल्टे लटक कर नरक इसी दुनिया में भोगना पडा तब ?

एक और तथ्य को समझो ये परिस्थितियाँ जो इस बात के लिये जिम्मेदार हैं , इन्हें , इस वक्त को निकल जाने दो , कुछ मत बोलोईश्वर , प्रभु यीशु , खुदा , बाबा नानक , जिसको भी मानते हो , उसके आगे सिर टेक कर बस इस वक्त को गुजर जाने दो , बात को बिगड़ने मत दोअनहोनी वाली घड़ी टल जायेगी , फिर सब कुछ शांत हो जाएगावक्त खुद-ब-खुद एक बड़ा मरहम है

तुम परेशान होओगे कि मैं दुनिया का , माँ-बाप का सामना कैसे करूँतुमने किसी की हत्या नहीं की , कोई पाप नहीं किया , घबराओ नहींअपनी इस ठोकर से प्रेरणा लो कि मैं अब जरुर मेहनत करूँगा , करके दिखाऊंगा । यकीन मानिए , हार को बस स्वीकार कीजिये , बस कुछ ही दिनों की बात है , दुनिया कहाँ याद रखती है कि कौन फेल हुआ था कौन पास ; बस ये बीती बात हो जायेगी ।
इंसानियत , जिन्दगी सबसे बड़ा धर्म है । जान देने व जान लेने का हक़ किसी को नहीं है । कुछ भी हो जाए , कैसे भी दुख आयें , जिन्दगी निरन्तर चलती रहनी चाहिए ; जैसे नदियाँ कल-कल करती , रास्ते के सारे कार्य करतीं , प्यासों की प्यास बुझातीं , अन्न-फलों -सब्जियों को सीँचतीं , हमारी आँखों को तृप्त करतीं , बिना कोई शिकायत किये , मन्जिल (समुद्र ) तक पहुँचने के लिये चलती रहती हैं । हम कर्म करने के लिये पैदा हुए हैं । काम तो किस्मत होते हैं , इस मन्त्र के सामने कोई बाधा नहीं आती । दुख से आप बड़ी आसानी से पार पा सकते हो । शुभ कर्म करते हुए आपको भरपूर मानसिक संतुष्टि प्राप्त होती है ।
कोई न कोई खासयित तुम्हारे अन्दर जरुर होगी , उसे पहचान कर विकसित करें । असीम आनन्द पाओगे , आप किसी न किसी क्षेत्र में जरुर सफल होंगे ।
जीवन-मृत्यु ईश्वर के हाथ में है , हमें चिंता नहीं करनी । मौत को जब आना होगा आप घर से न भी निकलें तो भी आयेगी ही । जितनी जिन्दगी किस्मत में लिखी है , उसे कोई नहीं छीन सकता । ' जियो और जीने दो ' वाली उक्ति अपनाएँ । सबकी ख़ुशी में खुश रहें । किसी गरीब की मदद करें , किसी रोते हुए बच्चे को हँसाएँ , किसी बीमार की सेवा करें । अपनी जिन्दगी को एक अर्थ दें , अपने लिये तो सभी जीते हैं , जितना बन पड़े , दूसरों के लिये भी जी कर देखें । यही हमारे संचित कर्म बन जायेंगे । संचित धन तो इस जन्म में मदद करता है , संचित कर्म तो अगले जन्म में भी मदद करते हैं । ये हमारे मरने के बाद भी जिन्दा रहते हैं । पिछले कर्मों का हिसाब हम भोग रहे हैं , अब हम जो अच्छे कर्म करेंगे तो आगे की चिंता नहीं करनी पड़ेगी । हम अपने कर्मों को भोगे बिना इस दुनिया से नहीं जा सकते , बार बार लौटना पड़ सकता है ।
जब कोई कठिनाई आती है , घबराओ नहीं । कठिनाइयों का सामना किये बिना क्या कोई शक्तिशाली बना है ? हृदय को गिरावट की तरफ न ले जाओ । ईश्वर की कृपा का सहारा लेकर मार्ग तय कर लो । आत्म-विश्वास असंभव लगने वाले कार्यों को भी संभव बना देता है ।
" तुम्हारा शरीर तुम्हारी आत्मा का सितार है , और ये तुम्हारे हाथ की बात है कि तुम उससे मधुर स्वर झंकृत करो या बेसुरी आवाज निकालो । " _खलील जिब्रान
प्रभु ने ये शरीर , आत्मा को एक साधन के रूप में दिया है । सुख-सुविधाओं को भोगने के साथ साथ सेवा करने का , कर्म करने का , असंभव को संभव कर दिखने का माध्यम है ये ।
गम और ख़ुशी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं । ख़ुशी मन की भावना की एक स्थिति है , इसी तरह दुख भी मन की एक हालत है । वक्त के साथ जिस तरह ख़ुशी कम होती जाती है , उसी तरह गम का रंग भी फीका पड़ता जाता है । हमें गम से जल्दी से जल्दी बाहर आ जाना चाहिए । जितना ज्यादा महसूस करेंगे , उतना ज्यादा गहराता जाएगा , हम अन्तर्मुखी होते जायेंगे और बाहरी दुनिया से नाता टूटता जाएगा । इस जीवन का उद्देश्य अकेले जीना या टूटना नहीं है । इस जीवन का उद्देश्य कर्म है , मनुष्य मात्र की भलाई है । खाली दिमाग शैतान का घर बन जाता है , उसे रचनात्मक दिशा दीजिये । सकारात्मक सोच दीजिये । आशावादी सोच किसी दवा से कम नहीं है ।
" ज्यादा चीजें या ज्यादा पैसा पाने से ख़ुशी नहीं मिलती । यह खुद को पहचान कर अपनी जरूरतों के अनुरूप लक्ष्यों को पाने से मिलती है । " ये विचार हैं मारग्रेट यंग के । अपने आसपास के नेक लोगों से भी हम अच्छाई का रास्ता सीख सकते हैं । हर दिन उठ कर सोचें कि आज का दिन मेरे लिये बहुत महत्व-पूर्ण है और इसे अधिक से अधिक उपयोगी बनाना है । आशा और उत्साह से अपने मार्ग पर अग्रसर होवो ।