१०.विचारों का आदान प्रदान करते हुए चित्त को हल्का रखिये
दोस्तों के साथ अपनी समस्याएँ शेयर कीजिये , वरना विचारों का ट्रैफिक जैम तनाव में बदल जायेगा , सबसे बातेँ करते हुए हल्के-फुल्के बने रहिये । परेशानियाँ अगर हमारे दिल में इकट्ठी हो जाएँ तो आउट-गोइंग बार होते ही , अवसाद का रूप ले सकती है । इसलिए शेयर कीजिये , दोस्त बनाइये कुछ बहुत करीबी ।
मन के ख्यालों को दबाओ मत , वरना नासूर बन जायेगा ।
११.आराम करना भी सीखिये
अगर हम दिमाग से , चित्त से न थकें तो शारीरिक थकान हमें महसूस ही नहीं होती । अवसाद में हमें मानसिक थकान बहुत महसूस होती है , इसलिए चौराहे पर जैसे ज्यादा गाड़ियाँ होते ही हरी बत्ती जल जाती है , उसी तरह विचारों का ज्यादा बोझा होते ही आप हरी बत्ती जलाइये और कर्म में जुट जाइए । काम से जब थकें तभी अपने आप से कहें कि अब मैं लाल बत्ती जला कर आराम कर लेता हूँ । आराम भी शरीर के लिये बहुत जरूरी है । जब भी लेटें , नकारात्मक नहीं सोचना तो ब्लैंक (खाली) होने से भी बचें । अच्छा अच्छा सोचिये , जो लोग आप से प्यार करते हैं उनके बारे में सोचें , जिनसे आप प्यार करते हैं उनके बारे में खुशफहमियाँ रखिये ।
अब आप ये तय कर लीजिये कि कब कब आपको लाल बत्ती जलानी है और कब कब हरी बत्ती ।
शनिवार, 25 सितंबर 2010
बुधवार, 1 सितंबर 2010
७.
९.दृढ इच्छा-शक्ति के साथ व्यवहार सन्तुलित रखें
अवसाद में इच्छा-शक्ति की कमी के कारण कभी व्यक्ति रोने लगता है , दूसरों पर दोष मढ़ता है या कभी प्रायश्चित करता है या बहुत ही गुमसुम रहने लगता है । इस सबसे आपको ऊपर आना है । खुश रहने वाले , ख़ुशी बाँटने वाले के पास सब आते हैं , पर क्या रोने वाले के पास कोई आना चाहता है ? रोज रोज रोने वाला अकेला पड़ जाता है , सब उससे दूर भागते हैं । आपने देखा होगा कि ढही हुई दीवार की कोई एक ईंट भी नहीं छोड़ता और सीधी खड़ी इमारत को कोई हाथ भी नहीं लगाता । आपको इमारत बनना है , शान से सीधी खड़ी इमारत ; दीवार की तरह ढहेंगें तो कोई नाम निशान भी न बचेगा । अपने आपको बचाइये , अपने डॉक्टर स्वयं बनिए । दृढ़-इच्छा शक्ति के साथ सब मुमकिन है । अपने आपको यकीन दिलाएं कि आप कर्म करते हुए पहले जैसे ही सन्तुलित बन जायेंगे ।
पुराने लोग कहते थे , मोटा खाओ , मोटा पहनो और मोटा ही सोचो । हर सूक्ष्म से सूक्ष्मतर बात पर हमारी पकड़ , हमारी प्रगति की सूचक तो है , पर इसके साथ ही तस्वीर का हर पहलू देख लेने की क्षमता ने हमें सकारात्मक नकारात्मक नजरिया भी दिया । बढ़ती उम्मीदों और बढ़ते तनाव ने अवसाद भी दिया । महीन हिसाब का कागज़ ही हमारी परेशानियों का कारण बना । अगर हम भावनाओं को हर जगह न जोड़ें , बहुत बारीकियों में न जाएँ , ख़ुशी वाली खबर से खुश होयें और तकलीफ वाली खबर को बहादुरी से हँस कर सहें , तभी जिन्दगी आसान है । इस प्रतिस्पर्धा भरी जिन्दगी में सबको चलने दीजिये ।
' हर ज़र्रा चमकता है , अनवारे इलाही से
हर साँस ये कहती है , हम हैं तो खुदा भी है '
हर साँस ये कहती है , हम हैं तो खुदा भी है '
माना कि समस्या के वक्त समस्या के सिवा और कुछ भी नजर नहीं आता । आप आँखें बंद करिए , अपने आप से कहिये ' मेरी समस्या कोई बाढ़ या प्रलय नहीं है जो सब कुछ बहा ले जायेगी , सब के साथ कोई न कोई समस्या होती है । विवेक के साथ मुझे जो करना चाहिए मैं करूँगा । परमात्मा मेरे साथ रहें , बस कोई गम नहीं । अगर हम सोचते ही रहेंगे , अवसाद से घिर जायेंगे । एक समस्या के साथ दूसरी समस्या खड़ी हो जायेगी । हमें समस्या का हल ढूंढना है , मन में ठान लेंगे तो कैसे नहीं पार पायेंगे ? भगवान सिद्धार्थ ने एक छोटी चींटी के बार बार गिर कर भी दीवार के ऊपरी छोर पर पहुंचना देख कर प्रेरणा पाई और अपना लक्ष्य हासिल किया ।
हाँ कभी गलती कर बैठे हों , उसे सुधारने की कोशिश कीजिये । परिस्थितियों को सुधारने का प्रयत्न करने में कर्म करना है । कभी भी अपनी प्रतिक्रियाओं से हालात को बिगाड़ें मत । अपने मन को उठाना है , गिराना नहीं है । याद रखिये सत्य हरा भरा है और असत्य दरिद्र , इसलिए सदा सत्य का साथ दीजिये । जब तक किसी के जीवन मरण का प्रश्न न हो , झूठ मत बोलिए । ' एक सच सौ सुख ' एक झूठ सौ झूठ बुलवायेगा । अपनी आत्मा अपने ईश्वर के सामने दोषी हो जायेंगे । जो लोग झूठ बोल कर , दूसरों को बेवकूफ बना कर , दूसरों का निरादर कर , अपने आपको बड़ा होशियार समझते हैं ; वह अज्ञानी लोग यह नहीं जानते कि वह इस दुनिया में किसी के भी भरोसे के काबिल नहीं हैं । आप दृढ़ता से सत्य की राह पर चलिए , जैसे प्रकृति शुद्ध रूप में आपके समक्ष है , आप भी शुद्ध रूप में प्रकृति से लय मिलाइये ।
अपने आप को कभी भी संशय के भँवर में न डालें । अपने निर्णय खुद लें व उन पर अमल करें । असफलता से बिलकुल न घबरायें । छोटे-छोटे उद्देश्य बनायें , उन्हें पूरा करने की कोशिश करें । वक्त रेत की तरह मुट्ठी से निकलता जाता है , बेहतर है वक्त के साथ चलिए । समय के साथ- साथ अपने जीवन का भी सदुपयोग करिए व जानिये । चलने का नाम ही जीवन है । वक्त न कभी रुका है , न कभी रुकेगा , इसलिए उसके साथ ताल से ताल मिला कर चलिए ।
आप सोचेंगे कि कल अगर मैं ठीक हो भी गया तो लोग क्या कहेंगे , इसे क्या हुआ था । आप कहेंगे कल मैं मानसिक तौर पर थोडा परेशान था , थोडा डिस्टर्बड था बस । बुलन्द इमारत की तरफ कोई आँख टेढ़ी करके भी नहीं देखता । ऐसा दृढ इच्छा शक्ति के साथ निश्चय ही कर पायेंगे । यकीन रखें , जिस दिन ये निर्णय ले लेंगे , ' जब जागे तभी सबेरा ' चरितार्थ हो जाएगा । आपकी जिन्दगी की सुबह हो चुकी है , चारों तरफ प्रकाश फ़ैल रहा है , महसूस कीजिये ।
आपने देखा होगा कि विपदा के समय कभी आपको अचानक दैवीय सहायता प्राप्त हो जाती है । कोई इन्सान भगवान् का अंश बन कर अचानक आपकी सहायता कर देता है । इसीलिये कहते हैं सब में ईश्वर है , सब में ईश्वर समझ कर सबकी सहायता के लिये तत्पर रहो । जिस दिन आप किसी की आड़े वक्त में सहायता करोगे बिना कुछ पाने की उम्मीद के साथ , आप खुद उस के लिये ईश्वर बन जाओगे । अपने आस-पास जिसका भी सहारा बन सकते हो बन जाओ , आपको खुद ही सहारा मिल जाएगा ।
" Do not complain of sorrows , bacause it is far from etiquette. Happiness can not be had without undergoing sufferings ."
दुख की शिकायत मत करो । इन्सान से शिकायत करोगे सभ्यता के खिलाफ भी है , बात भी बिगड़ेगी । भगवान् से बात कर सकते हैं । दुख आने में भी रहस्य है , प्रकृति चाहती है हम और मंजें और निखरें । अपने ऊपर अभिमान न करें , सुख दुख को उसका प्रसाद समझ , स्वीकार करें । दुख के बाद सुख भी अवश्य ही आएगा । प्रभु , तूने ये कैसी तैनात बाँधी , हर सुबह के साथ एक रात बाँधी , साथ-साथ बाँधी ! दुख है ही इसलिए कि हम उसे महसूस कर रहे हैं , दुख महसूस न करें तो दुख है ही नहीं । ऐसा सोचते हुए संतुलित रहें ।
हमें सत्य और ईमानदारी के साथ कर्म करते हुए सब कुछ ऊपरवाले को अर्पण कर देना चाहिए । आपने कितना कुछ पाया है , उसका सदा शुक्रिया अदा करना चाहिए । अपने भौतिक सुख-सुवाधाओं का अभिमान न करें , कितने ही लोगों को आपसे भी ज्यादा मिला होगा , प्रकृति चाहे तो एक पल में सारा दृश्य बदल सकती है । आपका काम कर्म करना है , फल का हिसाब किताब रखना छोड़िए । अपने उद्देश्य को याद रखते हुए अपने अंतर्मन का तापमान नियंत्रित रखिये ।
सँवादहीनता की स्थिति कभी न आने दें । घर में सबके साथ बात अवश्य करें । बात न करने से कुछ भी भ्रम पनप सकते हैं व तनाव बढ़ सकता है । बात करते रहने से मन-प्राण हल्का-फुल्का रहता है ।
बेवजह शक न करें । अधिकार के साथ थोडा झगड़ा कर सकते हैं , पर बात बिगड़ने कभी न दें । अपनी तरफ से हर किसी का पूरा ध्यान रखें । सेवा करने से , दुख-सुख में ख्याल रखने से , हाल-चाल पूछते रहने से , हमारे मूक प्यार को अभिव्यक्ति मिल जाती है ।
किसी अभ्यासी से अगर हम ध्यान का प्रशिक्षण लें या पहले से जानते हों तो करें ; पायेंगे कि दुख व भौतिकता तो संसार रूपी नदी में बहती हुई चीजें मात्र हैं । इन सब को साक्षी भाव से देखना व ध्यान में सर्वशक्तिमान को , उसके प्रकाश व कृपा को महसूस करना ही आनंद है ।
अनुशासित व व्यवस्थित रहते हुए दृढ़ता के साथ संतुलित रहें ।
सोमवार, 30 अगस्त 2010
६.
८.जीवन अनमोल है , स्वस्थ मानसिकता रखिये
कुछ लोग जीवन से भागने में ही समस्या का समाधान खोजने लगते हैं । उनका रुख आत्महत्या की तरफ होता है । क्या उन्होंने कभी सोचा है कि जिस मौत को वो गले लगाने जा रहे हैं , वह कितनी तकलीफदेह होती है ? कौन जानता है कि मौत के बाद हमें इस से भी भयावह परिस्थितियों का सामना करना पड़े ? अभी तो हम शरीर व दिमाग से समर्थ हैं व परिस्थितियों को बदलने की क्षमता रखते हैं , बाद की बात कौन जानता है । बहादुरी भागने में नहीं डट कर सामना करने में है । हारना या जीतना मायने नहीं रखता , सामना करना मायने रखता है । कर्मफल प्रकृति के हाथ में है । आग जली तो तपिश होगी ही , बारिश हुई तो नमी होगी ही ; इसी प्रकार प्रकृति के नियमानुसार हम कर्मों का फल पाते हैं ।
आत्महत्या का विचार भी मन में लाना पाप है । न हम अपनी मर्जी से इस दुनिया में आए हैं , न ही अपनी मर्जी से इस दुनिया से जायेंगे । ये विधान ऊपर वाले ने अपने हाथ में रखा हुआ है । हम उसके हाथ की कठपुतलियाँ हैं , उसने धागे को ज़रा कसा या ढीला किया , हम असन्तुलित हो जाते हैं । उसने जब हमें खुशियाँ दीं , हम सोचते हैं , मैंने किया , मैंने पाया ; अभिमान से भर जाते हैं । कभी उसका शुक्रिया अदा नहीं करते । जब ज़रा दुख आए , हम हारने लगते हैं । किस्मत को , खुदा को , वक्त को , व्यक्तियों को दोष देने लगते हैं । इसमें भी प्रभू का भेद जानो । वो चाहता है हम उसे याद करें , उसे पुकारें , भक्त की आर्त पुकार पर प्रभु दौड़ा चला आता है । हम उसे महसूस तो करें , उसका आशीर्वाद पा लेंगे ।
जिन्दगी की परीक्षाओं में फेल होने पर छोटे बच्चे क्या बड़े बड़े भी घर छोड़ने की , दुनिया छोड़ने की बात सोचने लग जाते हैं । उनसे ये विनती है कि कभी भूल कर भी ये विचार मन में न लायें । उनके माँ-बाप , परिवार के लोग , सब उनसे कितना स्नेह करते हैं कि उन्होंने सब उम्मीदें अपने इस बच्चे से लगा लीं । वो अपने बच्चे को सबसे ऊपर देखना चाहते थे , बस यही उनका अपराध बन गया । उन्होंने कभी तुम्हें डांटा होगा । बच्चे , अपने आपको उनकी जगह रख कर सोचो तो पाओगे कि तुम भी इसी तरह अपने बच्चों से उम्मीद करोगे और ऐसा ही व्यवहार करोगे । दुनिया से जाने का मतलब एक न मिटने वाला कलंक अपने व अपने प्रियजनों के नाम पर लगा देना । वो जो तुम्हें इतना प्यार करते हैं , इस अंजाम के बारे में सोच भी नहीं सकते । जाने के बाद वापसी अपने हाथ नहीं होगी , फिर हम लाख चाहें , हम लौटें , हमारे बस की बात नहीं होगी । जाते जाते आधे बीच में लटक गए तब ? त्रिशंकु की तरह उल्टे लटक कर नरक इसी दुनिया में भोगना पडा तब ?
एक और तथ्य को समझो ये परिस्थितियाँ जो इस बात के लिये जिम्मेदार हैं , इन्हें , इस वक्त को निकल जाने दो , कुछ मत बोलो । ईश्वर , प्रभु यीशु , खुदा , बाबा नानक , जिसको भी मानते हो , उसके आगे सिर टेक कर बस इस वक्त को गुजर जाने दो , बात को बिगड़ने मत दो । अनहोनी वाली घड़ी टल जायेगी , फिर सब कुछ शांत हो जाएगा । वक्त खुद-ब-खुद एक बड़ा मरहम है ।
तुम परेशान होओगे कि मैं दुनिया का , माँ-बाप का सामना कैसे करूँ । तुमने किसी की हत्या नहीं की , कोई पाप नहीं किया , घबराओ नहीं । अपनी इस ठोकर से प्रेरणा लो कि मैं अब जरुर मेहनत करूँगा , करके दिखाऊंगा । यकीन मानिए , हार को बस स्वीकार कीजिये , बस कुछ ही दिनों की बात है , दुनिया कहाँ याद रखती है कि कौन फेल हुआ था कौन पास ; बस ये बीती बात हो जायेगी ।
इंसानियत , जिन्दगी सबसे बड़ा धर्म है । जान देने व जान लेने का हक़ किसी को नहीं है । कुछ भी हो जाए , कैसे भी दुख आयें , जिन्दगी निरन्तर चलती रहनी चाहिए ; जैसे नदियाँ कल-कल करती , रास्ते के सारे कार्य करतीं , प्यासों की प्यास बुझातीं , अन्न-फलों -सब्जियों को सीँचतीं , हमारी आँखों को तृप्त करतीं , बिना कोई शिकायत किये , मन्जिल (समुद्र ) तक पहुँचने के लिये चलती रहती हैं । हम कर्म करने के लिये पैदा हुए हैं । काम तो किस्मत होते हैं , इस मन्त्र के सामने कोई बाधा नहीं आती । दुख से आप बड़ी आसानी से पार पा सकते हो । शुभ कर्म करते हुए आपको भरपूर मानसिक संतुष्टि प्राप्त होती है ।
कोई न कोई खासयित तुम्हारे अन्दर जरुर होगी , उसे पहचान कर विकसित करें । असीम आनन्द पाओगे , आप किसी न किसी क्षेत्र में जरुर सफल होंगे ।
जीवन-मृत्यु ईश्वर के हाथ में है , हमें चिंता नहीं करनी । मौत को जब आना होगा आप घर से न भी निकलें तो भी आयेगी ही । जितनी जिन्दगी किस्मत में लिखी है , उसे कोई नहीं छीन सकता । ' जियो और जीने दो ' वाली उक्ति अपनाएँ । सबकी ख़ुशी में खुश रहें । किसी गरीब की मदद करें , किसी रोते हुए बच्चे को हँसाएँ , किसी बीमार की सेवा करें । अपनी जिन्दगी को एक अर्थ दें , अपने लिये तो सभी जीते हैं , जितना बन पड़े , दूसरों के लिये भी जी कर देखें । यही हमारे संचित कर्म बन जायेंगे । संचित धन तो इस जन्म में मदद करता है , संचित कर्म तो अगले जन्म में भी मदद करते हैं । ये हमारे मरने के बाद भी जिन्दा रहते हैं । पिछले कर्मों का हिसाब हम भोग रहे हैं , अब हम जो अच्छे कर्म करेंगे तो आगे की चिंता नहीं करनी पड़ेगी । हम अपने कर्मों को भोगे बिना इस दुनिया से नहीं जा सकते , बार बार लौटना पड़ सकता है ।
जब कोई कठिनाई आती है , घबराओ नहीं । कठिनाइयों का सामना किये बिना क्या कोई शक्तिशाली बना है ? हृदय को गिरावट की तरफ न ले जाओ । ईश्वर की कृपा का सहारा लेकर मार्ग तय कर लो । आत्म-विश्वास असंभव लगने वाले कार्यों को भी संभव बना देता है ।
" तुम्हारा शरीर तुम्हारी आत्मा का सितार है , और ये तुम्हारे हाथ की बात है कि तुम उससे मधुर स्वर झंकृत करो या बेसुरी आवाज निकालो । " _खलील जिब्रान
प्रभु ने ये शरीर , आत्मा को एक साधन के रूप में दिया है । सुख-सुविधाओं को भोगने के साथ साथ सेवा करने का , कर्म करने का , असंभव को संभव कर दिखने का माध्यम है ये ।
गम और ख़ुशी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं । ख़ुशी मन की भावना की एक स्थिति है , इसी तरह दुख भी मन की एक हालत है । वक्त के साथ जिस तरह ख़ुशी कम होती जाती है , उसी तरह गम का रंग भी फीका पड़ता जाता है । हमें गम से जल्दी से जल्दी बाहर आ जाना चाहिए । जितना ज्यादा महसूस करेंगे , उतना ज्यादा गहराता जाएगा , हम अन्तर्मुखी होते जायेंगे और बाहरी दुनिया से नाता टूटता जाएगा । इस जीवन का उद्देश्य अकेले जीना या टूटना नहीं है । इस जीवन का उद्देश्य कर्म है , मनुष्य मात्र की भलाई है । खाली दिमाग शैतान का घर बन जाता है , उसे रचनात्मक दिशा दीजिये । सकारात्मक सोच दीजिये । आशावादी सोच किसी दवा से कम नहीं है ।
" ज्यादा चीजें या ज्यादा पैसा पाने से ख़ुशी नहीं मिलती । यह खुद को पहचान कर अपनी जरूरतों के अनुरूप लक्ष्यों को पाने से मिलती है । " ये विचार हैं मारग्रेट यंग के । अपने आसपास के नेक लोगों से भी हम अच्छाई का रास्ता सीख सकते हैं । हर दिन उठ कर सोचें कि आज का दिन मेरे लिये बहुत महत्व-पूर्ण है और इसे अधिक से अधिक उपयोगी बनाना है । आशा और उत्साह से अपने मार्ग पर अग्रसर होवो ।
इंसानियत , जिन्दगी सबसे बड़ा धर्म है । जान देने व जान लेने का हक़ किसी को नहीं है । कुछ भी हो जाए , कैसे भी दुख आयें , जिन्दगी निरन्तर चलती रहनी चाहिए ; जैसे नदियाँ कल-कल करती , रास्ते के सारे कार्य करतीं , प्यासों की प्यास बुझातीं , अन्न-फलों -सब्जियों को सीँचतीं , हमारी आँखों को तृप्त करतीं , बिना कोई शिकायत किये , मन्जिल (समुद्र ) तक पहुँचने के लिये चलती रहती हैं । हम कर्म करने के लिये पैदा हुए हैं । काम तो किस्मत होते हैं , इस मन्त्र के सामने कोई बाधा नहीं आती । दुख से आप बड़ी आसानी से पार पा सकते हो । शुभ कर्म करते हुए आपको भरपूर मानसिक संतुष्टि प्राप्त होती है ।
कोई न कोई खासयित तुम्हारे अन्दर जरुर होगी , उसे पहचान कर विकसित करें । असीम आनन्द पाओगे , आप किसी न किसी क्षेत्र में जरुर सफल होंगे ।
जीवन-मृत्यु ईश्वर के हाथ में है , हमें चिंता नहीं करनी । मौत को जब आना होगा आप घर से न भी निकलें तो भी आयेगी ही । जितनी जिन्दगी किस्मत में लिखी है , उसे कोई नहीं छीन सकता । ' जियो और जीने दो ' वाली उक्ति अपनाएँ । सबकी ख़ुशी में खुश रहें । किसी गरीब की मदद करें , किसी रोते हुए बच्चे को हँसाएँ , किसी बीमार की सेवा करें । अपनी जिन्दगी को एक अर्थ दें , अपने लिये तो सभी जीते हैं , जितना बन पड़े , दूसरों के लिये भी जी कर देखें । यही हमारे संचित कर्म बन जायेंगे । संचित धन तो इस जन्म में मदद करता है , संचित कर्म तो अगले जन्म में भी मदद करते हैं । ये हमारे मरने के बाद भी जिन्दा रहते हैं । पिछले कर्मों का हिसाब हम भोग रहे हैं , अब हम जो अच्छे कर्म करेंगे तो आगे की चिंता नहीं करनी पड़ेगी । हम अपने कर्मों को भोगे बिना इस दुनिया से नहीं जा सकते , बार बार लौटना पड़ सकता है ।
जब कोई कठिनाई आती है , घबराओ नहीं । कठिनाइयों का सामना किये बिना क्या कोई शक्तिशाली बना है ? हृदय को गिरावट की तरफ न ले जाओ । ईश्वर की कृपा का सहारा लेकर मार्ग तय कर लो । आत्म-विश्वास असंभव लगने वाले कार्यों को भी संभव बना देता है ।
" तुम्हारा शरीर तुम्हारी आत्मा का सितार है , और ये तुम्हारे हाथ की बात है कि तुम उससे मधुर स्वर झंकृत करो या बेसुरी आवाज निकालो । " _खलील जिब्रान
प्रभु ने ये शरीर , आत्मा को एक साधन के रूप में दिया है । सुख-सुविधाओं को भोगने के साथ साथ सेवा करने का , कर्म करने का , असंभव को संभव कर दिखने का माध्यम है ये ।
गम और ख़ुशी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं । ख़ुशी मन की भावना की एक स्थिति है , इसी तरह दुख भी मन की एक हालत है । वक्त के साथ जिस तरह ख़ुशी कम होती जाती है , उसी तरह गम का रंग भी फीका पड़ता जाता है । हमें गम से जल्दी से जल्दी बाहर आ जाना चाहिए । जितना ज्यादा महसूस करेंगे , उतना ज्यादा गहराता जाएगा , हम अन्तर्मुखी होते जायेंगे और बाहरी दुनिया से नाता टूटता जाएगा । इस जीवन का उद्देश्य अकेले जीना या टूटना नहीं है । इस जीवन का उद्देश्य कर्म है , मनुष्य मात्र की भलाई है । खाली दिमाग शैतान का घर बन जाता है , उसे रचनात्मक दिशा दीजिये । सकारात्मक सोच दीजिये । आशावादी सोच किसी दवा से कम नहीं है ।
" ज्यादा चीजें या ज्यादा पैसा पाने से ख़ुशी नहीं मिलती । यह खुद को पहचान कर अपनी जरूरतों के अनुरूप लक्ष्यों को पाने से मिलती है । " ये विचार हैं मारग्रेट यंग के । अपने आसपास के नेक लोगों से भी हम अच्छाई का रास्ता सीख सकते हैं । हर दिन उठ कर सोचें कि आज का दिन मेरे लिये बहुत महत्व-पूर्ण है और इसे अधिक से अधिक उपयोगी बनाना है । आशा और उत्साह से अपने मार्ग पर अग्रसर होवो ।
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